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ईर्ष्या द्वेष

 ईर्ष्या द्वेष  

एक बार एक सेठजी ने पूजा-पाठ करके भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया। शिवजी ने सेठ से प्रसन्न होकर कहा लो यह घण्टा ले जाओ। जब तुम्हें किसी वस्तु की आवश्यकता पड़े तो इसे बजा देना, तुम्हारी इच्छित वस्तु तुम्हें प्राप्त हो जायेगी। परन्तु तुम जितना मॉँगोगे उससे दुगनीमात्रा में वही वस्तु तुम्हारे पड़ोसी को भी मिला करेगी।

सेठजी ने भगवान शिव से वह घण्टा ले तो लिया परन्तु. पड़ौसियों को दुगने लाभ का समाचार सुनकर उस घण्टे
को कभी प्रयोग नहीं किया।
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 एक समय ऐसा आया कि सेठजी कंगाल हो गये तो अपनी पत्नी से घण्टे को न छूने का आदेश देकर परदेश में पैसा कमाने के लिए चल दिये। पीछे उसकी पत्नी ने कुछ दिन तो दुःख में बिताये। परन्तु जब उसकी पत्नी के  पास कुछ भी न रहा तो उसने सोचा घण्टे को बाजार में बेच दिया जाये। जैसे ही उसने घण्टा  को उठाया और वह जो चाह रही थी, वही घण्टे से प्राप्त हो गई | यह देखकर वह बहुत प्रसन्न हुईं। अब प्रतिदिन वह घण्टे का बजाने  लगी और फलस्वरूप वह धनवान बन गई। परन्तु पड़ोसी भी उसकी अपेक्षा दुगने धन के स्वामी बन गये।
जब उसका पति परदेश से लौटकर घर आया तो उसने सब  हाल देखा तो वह बड़ा दुःखी हुआ क्‍योंकि सेठ एक स्वार्थी व्यक्ति था। एक दिन उसने अपने घण्टे से प्रार्थना की कि मेरी एक आंख फूट जाये। ऐसा मांगने से उसके पड़ोसी की भी दोनों आँखें फूट गयी।
दोबारा सेठजी ने घण्टे से कहा मेरे घर के आगे एक कुंआ खुद जाये। पुनः ऐसे कहने से पड़ोसियों के मकानों के आगे दो कुएँ बन गये।
क्योंकि पड़ौसी तो पहले दोनों आँखों से अन्धे हो गये थे और अब दरवाजे के सम्मुख दो-दो कुए हो जाने के कारण वे सभी पड़ोसी कुएँ  में गिर  कर मर गये।
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