Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
जै वो देना जाणै सै, वो लेना भी जाणै सै।
बन्दे क्यां की करै मरोड़, बता क्यों छाती तानै सै।।
तेरे कोन्या कुछ भी बसका, भेदी सै वो खुद नस नस का।
चाहे कितनी ए कर ले दौड़, वो सारी चाल पिछाणै सै।।
चाहे कितनी ए कर ले दौड़, वो सारी चाल पिछाणै सै।।
कल भी उसका आज उसी का, जग में चलता राज उसी का।
पगले मेरा मेरी छोड़, तूँ बैठा देश बिराने सै।।
पगले मेरा मेरी छोड़, तूँ बैठा देश बिराने सै।।
समझें थे जो दास वक्त नै, चले गए सब छोड़ जगत नै।
ला ले मरघट की एक दौड़, खाक क्यूँ दर दर की छाणै सै।।
ला ले मरघट की एक दौड़, खाक क्यूँ दर दर की छाणै सै।।
ओम गुरु कह बात पते की, रामधन कुछ तै करले नेकी।
बेरा ना कद होजा तोड़, काल तेरै खड़ा सिरहाने सै।।
बेरा ना कद होजा तोड़, काल तेरै खड़ा सिरहाने सै।।