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जगमग-२ होइ हंसा रे – Jagmag Jagmag hoi Hansa Re

JagMag Jagmag Hoi Hansa Re Kabir Das ji

Kabir ke Shabd

जगमग-२ होइ हंसा रे जगमग-२ होइ।
बिन बादल जहां बिजली रे चमके, अमृत वर्षा होइ।
ऋषि मुनिदेव करें रखवाली, पी ना पावै कोई।।
निशवासर जहां अनहद बाजे, धुन सुन आनन्द होइ।
जोत जगे साहब के निशदिन, सहज में सहज समोई।।
सार शब्द की धुन उठत है, बुझै विरला कोई।
झरना झरै नहर के नाकै, पीते ही अमर जा होइ।।
साहब कबीर भए वैदेही, चरणों में भक्ति समोई।
चेतन आला चेत प्यारे, ना तै जागा बिगोई।।
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