साधुवेष बनाकर धोखा देना बडा पाप है
एक राजा को कोढ़ की बीमारी हो गयी थी । वैद्यो ने बताया कि मान सरोवर से हंस पकड़वाकर मँगाये जायें और उनके पित्त से दवा बने तो निश्चय ही राजा का रोग नष्ट हो जाय। राजा के आदेश से व्याध भेजे गये। व्याधों को देखते ही हंस उड़ गये। तब व्याधों ने एक कौशल रचा। उन्होंने गेरुआ वस्त्र पहन लिये, नकली जटा लगा ली, कमण्डलु ले लिये, भस्म के त्रिपुण्डू लगा लिये, गले में माला पहन ली। उनके इस संन्यासी वेष को देखकर हंस नहीं उड़े। व्याध हंसों को पकडकर राजा के पास ले आये।
राजा ने जब व्याधों के द्वारा हंसों के पकड़े जाने का तरीका सुना, तब उसके मन में विचार आया कि हंसो ने संन्यासी वेष का विश्वास करके व्याधों का भय नहीं किया। वे बड़े सरल हैं। इस प्रकार धोखा देकर उन्हें पकडना और मारना सर्वथा अनुचित है। बडा पाप है। यह सोच कर राजा ने उनको छोड़ दिया। इस पुण्य के कारण राजा एक दूसरे वैद्य की निर्दोष दवा से रोगमुक्त हो गया। व्याधों ने भी सोचा कि जब कपटी साधु के वेष से वन के पशु पक्षी तक विश्वास कर लेते हैँ, तब असली साधु होने पर तो सभी विश्वास करेंगे। इससे वे भी पक्षी वध का नृशंस काम छोडकर असली त्यागी बन गये।