इन्कार का भाव
बरसात के दिन आने वाले थे। एक चिड़िया अपने बच्चो के साथ आश्रय बनाने के लिए नदी किनारे गयी। वहां दो पेड़ थे। उसने एक पेड़ से कहा – ” बरसात से बचने के लिए में और मेरे बचे तुम्हारी डाल पर अपना घोंसला बना ले ?” पेड़ कभी किसी को भी आश्रय देने से मना नहीं करते किन्तु उस पेड़ ने बड़ी ही बेरुखी के साथ चिड़िया को मना कर दिया। चिड़िया फिर वही दूसरे पेड़ के पास गयी तो उस पेड़ ने चिड़िया को अपना आश्रय बनाने की अनुमति दे दी।
बरसात के दिन आरम्भ हुए एक दिन तेज बारिश आयी उस वर्षा को पहला पेड़ झेल नहीं पाया और उखडकर नदी में बह गया।
पेड़ को बहता देख चिड़िया बोली – ऐ पेड़ एक दिन में तेरे से आश्रय मांगने आयी थी। परन्तु तुमने बड़ी बेरुखी से मना कर दिया था। तुम्हारी उस बेरुखी की सजा भगवान् ने आज तुम्हे दी है। जो तुम नदी में बहे जा रहे हो।
पेड़ ने बड़े शांत भाव से उत्तर दिया। में जानता मेरी जड़े कमजोर है। और इस बारिश में टिक नहीं पाऊंगा। में तुम्हारी और बचे की जान खतरे में नहीं डालना चाहता था। इसलिए तुम्हे शख्ती से मना करना पड़ा। मना करने के लिए मुझे क्षमा कर दो। और ये कहते कहते पेड़ नदी में बह गया।
किसी के इंकार को उसकी कठोरता न समझे। क्या पता उसके इसी इंकार से उसका भला हो। कौन किस परिस्थिति में है शयद हम ना समझ पाए। इसलिए किसी के चरित्र और शैली को उनके वर्तमान व्यहवार से ना तोले।