महत्त्व किसमें?
किसी नरेश के मन में तीन प्रश्न आये…
१. प्रत्येक कार्य के करने का महत्त्वपूर्ण समय कौन-सा ?
२. महत्वका काम कौन…सा ?
३ . सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति कौन ?
नरेश ने अपने मंत्रियो से पूछा, राजसभा के विद्वानों से पूछा; किंतु उन्हें किसी के उत्तर से संतोष नहीं हुआ । वे अन्त में नगर के बाहर वन में कुटिया बनाकर रहने वाले एक संत के समीप गये । संत उस समय फाबड़ा लेकर फूलों की क्यारी को मिट्टी से खोद रहे थे । राजा ने साधु को प्रणाम करके अपने प्रश्न उन्हें सुनाये; परंतु साघु ने कोई उत्तर नहीं दिया । वे चुपचाप अपने काम मेँ लगे रहे। राजा ने सोचा कि साधु बृद्ध हैं, थक गये हैं, वे स्वस्थ चित्त से बैठें तो मेरे प्रश्नों का उत्तर दे सकेंगे । यह विचार करके उन्होंने साथु के हाथ से फावड़ा ले लिया और स्वयं मिट्टी खोदने लगे।
जब साधु फावड़ा देकर अलग बैठ गये, तब नरेश ने उनसे अपने प्रश्नो का उत्तर देने की प्रार्थना की । साधु बोले …वही कोई व्यक्ति दौड़ता आ रहा है । पहले हम लोग देखें कि वह क्या चाहता है। सचमुच एक मनुष्य दौड़ता आ रहा था । वह अत्यन्त भयभीत लगता था। उसके शरीर पर शास्त्रों के घाव थे और उनसे रक्त बह रहा था । समीप पहुँचने से पहले ही वह भूमि पर गिर पड़ा और मूछित हो गया । साधु के साथ राजा भी दौड़कर उसके पास गये। जल लाकर उन्होंने उसके घाव धोये। अपनी पगड़ी फाड़कर उसके घावों पर पट्टी बाँधी। इतने में उस व्यक्ति की मूर्छा दूर हुई, राजा को अपनी शुधूषा में लगे देखकर उसने उनके पैर पकड़ लिये और रोकर बोला… मेरा अपराध क्षमा करें। नरेश ने आश्चर्यपूर्वक कहा…भाई ! मैं तो तुम्हें पहचानता तक नहीं।
उस व्यक्ति ने बताया – आपने मुझे कभी देखा नहीं है किंतु एक युद्ध मेँ मेरा भाई आपके हाथों मारा गया है। मैं तभी से आपको मारकर भाईं का बदला लेने का अवसर दूँढ़ रहा था । आज आपकी वन की और आते देखकर मैं छिपकर आपको मार डालने आया था परंतु आपके सैनिकों ने मुझे देख लिया। वे मुझ पर एक साथ टूट पड़े । उनसे किसी प्रकार प्राण बचाकर मैं यहाँ आया। महाराजा आज मुझे पता लगा कि आप कितने दयालु हैं । आपने अपनी पगडी फाड़कर मुझ जैसे शत्रु के घाव बाँधे और मेरी सेवा को । आप मेरे अपराध क्षमा करें । अब मैं आजीवन आपका सेवक बना रहूँगा ।
उस व्यक्ति को नगर में भेजने का प्रबंध करके राजा ने साधु से अपने प्रश्नों का उत्तर पूछा त्तो साधु बोले – राजन्! आपको उत्तर तो मिल गया । सबसे महत्वपूर्ण समय वह था जब आप मेरी फूंलों की क्यारी खोद रहे थे क्योंकि यदि आप उस समय क्यारी न खोदकर लौट जाते तो यह व्यक्ति आप पर आक्रमण कर देता । सबसे महत्त्वपूर्ण काम था इस व्यक्ति की सेवा करना क्योंकि यदि सेवा करके आप इसका जीवन न बचा लेते तो यह शत्रुता चित्त मेँ लेकर मरता और पता नहीं इसकी तथा आपकी शत्रुता कितने जन्मो तक चलती रहती । और सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति मैं हूँ जिसके द्वारा शान्ति पाकर तुम लौटोगे ।
नरेश ने मस्तक झुकाया। साधु बोले-ठीक न समझे हो तो फिर समझ लो कि सबसे महत्त्वपूर्ण समय वर्तमान समय है, उसका उत्तम से उत्तम उपयोग करो। सबसे महत्वपूर्ण वह काम है जो वर्तमान मेँ तुम्हरि सामने है । उसे पूरी सावधानी से सम्पन्न करो। सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति वह है जो वर्तमान में तुम्हारे सम्मुख है। उसके साथ सभ्य रीति से व्यवहार करो । -सुं० सिं०