मैं किसी का कल्याण करूँ और उसे जान भी न पाऊँ
एक साधु थे। उनका जीवन इतना पवित्र तथा सदाचारपूर्ण था कि दिव्य आत्माएँ तथा देवदूत उनके दर्शन के लिये प्राय: आते रहते थे। साधु मुँह से तो अधिक मोहक शब्दो का प्रयोग नहीं करते थे, किंतु उनके कर्तव्य और उनकी सारी चेष्टाएँ पर-कल्याण के लिये ही होती थीं !
एक दिन एक देवदूत ने उनके संबन्ध में भगवान से प्रार्थना की, प्रभु ! इसे कोई चमत्कार पूर्ण सिद्धि दी जाय।
भगवान ने कहा, ठीक तो है, तुम जैसा कहते हो वैसा ही होगा । पूछो, इसे मैं कौन-सी चमत्कार की शक्ति प्रदान करूँ?
देवदूत ने साधु से कहा- क्या तुम्हें रोगियो को रोग मुक्त करने की शक्ति दे दी जाय?
साघु ने इसे अस्वीकार कर दिया और इसी प्रकार वे देवदूत के सभी अन्य प्रस्तावों को भी अस्वीकार करते गये।
पर हम लोगो की यह बलवती इच्छा है कि तुम्हें कोई परमारश्चर्य पूर्ण चमत्कारमयी सिद्धि दी ही जाय। देवदूत ने कहा।
तब ऐसा करो कि मैँ जिसके बगल से गुजरूँ, इसका, उसको बिना पता लगे ही उसका परम श्रेय कल्याण हो जाय, साथ ही मैं भी इसे न जान पाऊँ कि मुझसे किसका क्या कल्याण हुआ।
देवदूत ने उसकी छाया में ही यह अद्भुत शक्ति दिला दी। वह जिस दुखी या रोगग्रस्त चर, अचर प्राणियों पर पड़ जाती, उसके सारे त्रयताप नष्ट हो जाते और वह परम सुखी हो जाता। पर न तो कोई उसे धन्यवाद दे पाता और न समझ ही पाता कि उसका यह कल्याण कैसे हो गया, यह श्रेय उसे केसे मिला ?