![]() |
Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
हुई मेहर गुरु की, मरण लगा परिवार।।
पहलम हुई राम की वाणी, होण लगी फेर कुनबा घाणी।
फेर मरी घर की पटरानी, पुत्र मर गए चार।।
पोते मरे पाँच पचीसों, और मरें तो गेहूं पिसूं।
लात पकड़ के बाहर घीसू, करूँ किले से बाहर।।
लात पकड़ के बाहर घीसू, करूँ किले से बाहर।।
तीन जेठ जिनमें मर गए दोई।एक बचा सो करे रसोई।
जीमन आला रहा न कोई, सन्तों करो विचार।।
जीमन आला रहा न कोई, सन्तों करो विचार।।
दोनूं मरगी दौर जिठानी, नित उठ राखें खिंचातानी ।
सुखीराम मैं होगी श्यानी सोऊंगी पैर पसार।।
सुखीराम मैं होगी श्यानी सोऊंगी पैर पसार।।