भगवान को भगवान पर कैसे चढ़ाऊं?
व्यापक सब में ईश्वर, तुमको कहां दिखाऊँ।
ईश्वर ईश्वर पर चढे, वे सिद्धान्त बताऊं॥
एक विद्यालय में स्कूल लगने से पहले वहाँ के मुख्याध्यापक ने छात्रों को बराबर-बराबर खड़ा करके कहा- बच्चों पहले ईश्वर की प्रार्थना कर लो। सहायक अध्यापक महोदय ने ईश्वर की प्रार्थना कराई-
अजब हैरान हूँ, भगवान तुम्हें क्योंकर रिझाऊं मैं।
कोई वस्तु नहीं ऐसी जिसे सेवा में लाऊँ मैं॥
तुम्हीं व्यापक हो फूलों में, तुम्हीं व्यापक हो मूरत में।
भला भगवान को भगवान पर, क्यों कर चढ़ाऊँ मैं॥
सब छात्र अध्यापक महोदय के साथ प्रार्थना को बोलने लगे। परन्तु ध्यानदास नाम का छात्र चुप चाप मुँह बंद किये खड़ा था। अध्यापक महोदय ने उससे पूछा, तुम प्रार्थना क्यों नहीं बोल रहे हो? छात्र बोला गुरुजी मैं यह प्रार्थना नहीं बोलूँगा।समझाने पर भी जब वह नहीं माना तो उन्होंने मॉनिटर से हन्टर मंगवा लिया। गुरुजी ने ध्यानदास को छात्रों की पंक्ति से कान पकड़कर बाहर निकाला और उससे प्रार्थना बोलने को कहा, न बोलने पर तेरी इस हन्टर से पिटाई होगी।
छात्र ध्यानदास गुरुजी से बोला–आप मुझे हन्टर से नहीं मार सकते क्योंकि-वही व्यापक है हन्टर में-
वही व्यापक है लड़के में।
भला को भगवान से क्योंकर पिटाऊँ मैं॥
बताइये गुरुजी क्या हन्टर में और मुझ में एक ही ईश्वर नहीं है? गुरुजी ने बताया–बेटा! परमात्मा तो सर्व व्यापक है, इसलिए हन्टर में और तुम में परमात्मा है। लड़का बोला-इसीलिए आप मुझे हन्टर से नहीं मार सकते। गुरुजी कुछ सोचकर कुर्सी पर बैठने ही वाले थे कि उस लड़के ने कुर्सी को खींच लिया। गुरुजी धड़ाम से जमीन पर गिर पड़े। वे लड़के से बोले–अबे! तूने यह क्या कर दिया। लड़का बोला –
वही व्यापक है कुर्सी में, वही व्यापक है गुरु में ।
भला भगवान को भगवान पर क्योंकर बैठाऊँ मैं ॥
गुरुजी ने लड़के ध्यानदास से कहा मेरा पीछा छोड़। लड़का बोला-वही व्यापक है फूलों में, वही व्यापक है मूरत में। गुरुजी अगर आप ऐसे-ऐसे भजन और प्रार्थना स्वयं गायेंगे या औरों से गवायेंगे तो विश्व के समस्त कार्य बन्द हो जायेंगे क्योंकि ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिसमें ईश्वर उपस्थित न हों। गुरुजी ने हमेशा के लिए इस प्रार्थना को न गाने की प्रतिज्ञा कर ली।
धर्मप्राण भारत वर्ष में छोटी आयु के बच्चों से जब इस प्रकार के ज्ञान और वेदान्त से भरपूर गीत व गाने गवाये जायेंगे तो स्वयं ही सोचिये उन होनहार युवकों को हम कर्मवीर किस प्रकार बना सकेंगे? भगवान की प्रार्थना करने की जो गृहस्थियों एवं बालकों की प्राचीन पद्धति है उससे ही हमारा उद्धार संभव है। हम अपने नवयुवकों को कर्मवीर तभी बना सकेंगे, जब हम कर्मकाण्ड की शरण लें। वेदों में ईश्वर के एक लाख मंत्र हैं, जिनमें 80 हजार मंत्र कर्मकाण्ड के और 16 हजार मंत्र उपासना काण्ड के हैं तथा चार हजार मंत्र ज्ञान काण्ड के हैं।