कैसे करें मन पर नियंत्रण?
एक प्रसिद्ध सूक्ति है – मन ही बंधन का कारण है और मन ही मुक्ति का कारण है। मन को दुष्ट घोड़े की उपमा दी गई है, जो अनियंत्रित होकर कुमार्ग पर दौड़ता हुआ स्वयं की और सवार की हानि करता है। वैसे ही अनियंत्रित मन भी प्राणी को संकटों में ही डालता है। इस चंचल मन पर नियंत्रण कैसे करें? इस पर नियंत्रण के दो ही मार्ग हैं -या तो इसका दमन किया जाए या इसका मार्ग ही बदल दिया जाए। जिस वस्तु का दमन किया जाता है, कालांतर में वह वस्तु नि:सत्व हो जाती है। किसी पदार्थ को हाथ में लेकर उसे दबाइए, सार तत्व उसमें से निकल जाएगा। मन को निस्सार तो नहीं करना है। ऐसा करने पर वह बलहीन हो जाएगा और मनोबल के टूटने पर साधना-आराधना भी नहीं कर सकेगा। मन के कारण ही हम मनुष्य है। मन से ही चिंतन-मनन का भी सामर्थ्य हममें होता है। मन को वश में करने का सरल उपाय है -उसकी दिशा ही बदल दो। जो मन विकारों की ओर जा रहा है, उसे सदविचारों की ओर मोड़ दो। यह दिशा-परिवर्तन करना ही मन पर विजय पाना है। पदार्थों की तरफ आसक्ति ही मनुष्य को दिग्भ्रमित करती है। पदार्थों के प्रति आकृष्ट होने पर अच्छे-बुरे का, लाभ-हानि का विवेक लुप्त हो जाता है। केवल जो प्राप्त नहीं है, उसे प्राप्त करने की और जो प्राप्त है, उसका संरक्षण करने की लालसा प्रबल हो जाती है। अत: मन को वश में करने का प्रथम उपाय है सत् की संगति, जो सत्य है-उसके साथ रहो। अयथार्थ के साथ रहे तो तुम भी अविश्वसनीय बन जाओगे। सत्संग में सत् का अर्थ है श्रेष्ठ, उत्तम व अच्छा। इसका आशय यही है कि हम ऐसे व्यक्तियों की संगति में रहें जो श्रेष्ठ है, जिनका चरित्र या व्यवहार या आचरण श्रेष्ठ है। केशी श्रमण ने गौतम गणधर से पूछा कि आपका मन आपको दुष्ट अश्व की भांति उन्मार्ग पर क्यों नहीं ले जाता, तो गौतम ने कहा, मैं अपने मन को धर्म शिक्षा के द्वारा निगृहीत करता हूं और शास्त्र ज्ञान रूपी रस्से से उसे बांध लेता हूं, इसलिए वह उन्मार्ग पर नहीं जा पाता है। ज्ञानी जनों का कहना है कि सीधा मन पर आक्रमण मत करो। इससे तो हमारा मन हमारे हाथ से पारे के समान फिसल जाएगा और हम हाथ मलते रह जाएंगे। मनुष्य को प्रवृत्त करने के लिए मन-वचन और काया रूप तीन योग कहे गए हैं। इनमें मन सूक्ष्म है, इससे स्थूल है वाणी या वचन और इससे भी स्थूल है हमारी काया-हमारा शरीर। इस काया से भी स्थूल है वह आहार जिससे हमारे शरीर का निर्माण होता है। भारतीय पद्धति यह है कि स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ो। सबसे स्थूल है हमारा आहार। इसलिए सर्वप्रथम अपने आहार पर विजय प्राप्त करो। यदि उसे शुद्ध और सात्विक बना लिया तो मन पर विजय पाने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ जाएंगे। ‘ जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन’ यह कहावत निरर्थक नहीं है। आहार से सूक्ष्म है हमारी काया। आहार विजय के बाद शरीर को साधो, उसे नियंत्रण में लो। विविध प्रकार के आसन-व्यायाम आदि का विधान काया को साधने के लिए ही है। इससे शरीर की चंचलता कम होगी, जिसका मन पर असर होगा। काया से सूक्ष्म है वाणी या वचन और उससे सूक्ष्म है हमारा मन। वाणी पर नियंत्रण कर लिया तो मन स्वत: वश में हो जाएगा। लेकिन हम विपरीत क्रम से पुरुषार्थ करते हैं- सर्वप्रथम मन को जीतने का प्रयत्न करते हैं और वहीं मात खा जाते हैं। यदि दूसरे ढंग से कोशिश करें तो मन दुर्जेय नहीं रहेगा। उसका शत्रुभाव भी समाप्त हो जाएगा, वह हमारे साथ मित्रवत व्यवहार करेगा।