मन को नियंत्रित कैसे करें .. एक अनुभव ..
हम मन को नियंत्रित करने की बात करते हैं, पर हमारा मन और भी अधिक अनियंत्रित हो जाता है| अनेक लोग व अनेक संस्थाएँ हमें मन को नियंत्रित करने की कला सिखाने नाम पर हमारा शोषण करती हैं| अपना धन और समय लुटाकर भी हम मन को अनियंत्रित ही पाते हैं|
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एक बात ध्यान से सुन लें कि जब तक हमारे मन में कामनाएँ हैं तब तक मन कभी नियंत्रित हो ही नहीं सकता, चाहे कितना भी प्रयास कर लें|
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कामनाओं को नष्ट करने का एकमात्र उपाय है …… प्रभु से प्रेम और निरंतर नाम-स्मरण| अन्य कोई उपाय नहीं है| इसके लिए ह्रदय में भक्ति जागृत करनी होगी| जब परमात्मा निरंतर हृदय में होंगे तव सारी कामनाएँ तिरोहित हो जाएँगी|
कई जन्मों के बहुत ही अच्छे कर्म जब संचित होते हैं तब व्यक्ति में परमात्मा को पाने व जानने की इच्छा उत्पन्न होती है और परमात्मा से व उसकी सृष्टि से अहैतुकी प्रेम हो जाता है| और भी अधिक अच्छे कर्म हों तो व्यक्ति स्वयं ही प्रेममय हो जाता है|
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भक्ति सूत्रों में नारद जी ने इस परम प्रेम को ही भक्ति कहा है|
यह कोई एक जन्म की उपलब्धि नहीं है| यह बहुत सारे जन्मों में किये हुए बहुत ही अच्छे कर्मों का फल है| एक जन्म में कोई भक्त नहीं बन सकता| हाँ, यदि उसमें पूर्वजन्मों के अच्छे संस्कार हैं तो सत्संग से भक्ति जागृत हो जाती है|
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यह भक्ति ही आध्यात्म और ज्ञान को जन्म देती है| आध्यात्मिक और ज्ञानी वही बन सकता है जिसमें परम प्रेम यानि भक्ति हो| भक्ति माता है और अन्य सब गुण उसके पुत्र हैं| बिना भक्ति के मन पर नियंत्रण नहीं हो सकता|
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धन्य हैं ऐसे व्यक्ति, धन्य हैं उनके माता-पिता और धन्य है ऐसा परिवार और कुल जहाँ ऐसी भक्त आत्माएँ जन्म लेती हैं|
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हे जगन्माता, भारतवर्ष में सिर्फ भक्त, वीर और दानियों को ही जन्म दो|
ॐ ॐ ॐ ||