![]() |
Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
हो गया पिंजरा पुराणा, देता पंछी उल्हाना।
कुछ बीज धर्म के बोजा, लगे दाग जिगर के धोजा।।
उम्र बीत गई अकड़ ना टूटी, धनमाया जी भर के लूटी।
दान करा ना एक दो मुट्ठी, तूं पाप का भागी होग्या।।
जैसी संगत वैसी भाषा, क्यूं देता है झूठी अभिलाषा।
दुनिया देखै खड़ीं तमाशा, और गफलत के में सोग्या।।
दुनिया देखै खड़ीं तमाशा, और गफलत के में सोग्या।।
दो दिन का है जगत झमेला, मातपिता भाई गुरु चेला।
साथ चले ना पैसा धेला, तूं भूल भरम में सोग्या।।
साथ चले ना पैसा धेला, तूं भूल भरम में सोग्या।।
कह सिसरिया कर गया धोखा, जान माल का लगेँना धोखा।
फेर जन्म यो मिले न मौका, तूं सच्चा सद्गुरु टोह जा।।
फेर जन्म यो मिले न मौका, तूं सच्चा सद्गुरु टोह जा।।