Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
होग्या इंजन फैल चलन तैं, घण्टे बन्द घड़ी रहगी।
छोड़ ड्राइवर चला गया, टेशन पै रेल खड़ी रहगी।।
भर टी टी का भेष रेल में, बैठ वे खुफिया काल गए।
बन्द होगी रफ्तार चलन तैं, पुर्जे सारे हाल गए।
पांच ठगां नै गोझ काटली, डूब सभी धन माल गए।
बानवे करोड़ मुसाफिर थे, वे अपना सफर सम्भाल गए।
उठ उठ कै चाल गए,
सब खाली सीट पड़ी रहगी।।
टी टी गार्ड ओर ड्राइवर, अपनी ड्यूटी त्याग गए।
जलग्या सारा तेल खत्म हो, कोयला पानी आग गए।
पंखा फिरना बन्द होग्या, बुझ लट्टू गैस चिराग गए।
पच्चीस पंच रेल में ढूंढन, एक न एक लाग गए।
वे भी डर के भाग गए,
कोए झाँखी खुली भिड़ी रहगी।।
कल पुर्जे सब जाम हुए भई, टूटी कै कोई बूटी ना।
बहत्तर गाड़ी खड़ी लैन में, कील कुहाड़ी टूटी ना।
तीन सौ साठ लाकड़ी लागी, अलग हुई कोई फूटी ना।
एक सख्श बिन रेल तेरी की,पाई तक भी उठी ना।
एक चीज तेरी टूटी ना,
सब ठौड़ की ठौड़ जुड़ी रहगी।।
बहत्तर गाड़ी खड़ी लैन में, कील कुहाड़ी टूटी ना।
तीन सौ साठ लाकड़ी लागी, अलग हुई कोई फूटी ना।
एक सख्श बिन रेल तेरी की,पाई तक भी उठी ना।
एक चीज तेरी टूटी ना,
सब ठौड़ की ठौड़ जुड़ी रहगी।।
भरी पाप की रेल अड़ी, तेरी पर्वत पहाड़ पाल आगै।
धर्म लैन गई टूट तेरी, नदियां नहर खाल आगै।
चमन चिमनी का लैंप बुझ गया, आंधी हवा बाल आगै।
कंडम होगई रेल तेरी,जंक्शन जगत जंजाल आगै।
कह लख्मीचंद काल आगै,
बता किसकी आन अड़ी रहगी।।
धर्म लैन गई टूट तेरी, नदियां नहर खाल आगै।
चमन चिमनी का लैंप बुझ गया, आंधी हवा बाल आगै।
कंडम होगई रेल तेरी,जंक्शन जगत जंजाल आगै।
कह लख्मीचंद काल आगै,
बता किसकी आन अड़ी रहगी।।