Kabir ke Shabd
हे मैं नींद भर्म में सोऊँ हे,मेरे सद्गुरु रहे जगाए।।
सद्गुरु सत्त की जोत जगावै, अंधकार को दूर भगावै।
मैं प्रेम लड़ी में पोऊं हे।।
सद्गुरु जी की सुन लूं वाणी, मन की होजा दूर ग्लानि।
मैं तो दाग जिगर के धोऊं हे।।
सद्गुरु जी की लाकै सुरति, मन मन्दिर में बठा के मूर्ति।
मैं तो ज्ञान का दीपक झोऊँ हे।।
अपने गुरू संग सुन्न महल में, चरण बन्दगी रहूं टहल में।
मैं तो पार विधि से होऊं हे।।
सीताराम की रहूँ शरण मे, सोचसमझ पग धरूँ धरण में।
मैं तो मुंसिराम ने टोहुँ हे।।