है राम अब तो मौत आ जाए
मौत बुलाई, आ गई, अब काहे घबराय।
सम्मुख आई मौत जब, बोले बोझ उठाव॥
एक बार की बात है कि एक लकड़हारा गर्मियों में दोपहर के समय जंगल से लकड़ियाँ का गट्ठर सिर पर रखकर नगर में बेचने के लिए ला रहा था। तेज धूप के कारण पृथ्वी खूब तप रही थी। गर्म-गर्म लू चलने के कारण पक्षियों तक ने अपने घोंसलों से निकलना बन्द कर दिया था।
तेज धूप के कारण वह लकड़हारा चलते-चलते व्याकुल हो गया और एक पेड़ की छाँव में गट्ठर को रखकर बैठकर आराम करने लगा। बैठते ही वह बोला- हे राम! तू मृत्यु को भेज दे। उसका इतना कहते ही एक डरावनी सूरत वाली स्त्री ( मौत ) उसकी आँखों के सामने उपस्थित हो गई। वह बोली- तुमने मुझे याद किया, इसलिए मैं आ गयी हूँ।
लकड़हारे ने पूछा- तू कौन है? उसने कहा -मैं मृत्यु हूँ। यह सुनकर लकड़हारा घबरा गया और गिड़गिड़ाते हुए बोला- मैंने तुम्हें इसलिए स्मरण किया था कि तुम इस लकड़ी के गट्टर को मेरे सिर पर रखवा दो। मृत्यु ने गट्ठर को लकड़हारे के सिर पर रखवाकर स्वयं अन्तर्धान हो गयी।
भाइयों! संसार दिखावे के लिए एवं ऊपरी मन से प्रत्येक मनुष्य मृत्यु को बुलाता है परन्तु अन्तरात्मा से मृत्यु को कोई निमंत्रण नहीं देता।