Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
हरि नाम का सुमरन करले, क्यूं राह में कांटे बोवै सै।
चार दिनों की चमक चाँदनी, क्यूं भूल में जिंदगी खोवै सै।
बचपन में तेरा घला पालना, गात नहीं था सोधि में।
मातपिता ओर बुआ बहन ये, तनै उठावें गोदी में।
गर्भ के अंदर वचन भरे थे, दे किलकारी रोवे सै।।
आई जवानी मस्तानी, तेरै घमण्ड हुआ काया का।
मनमानी तूं करन लाग रहा, ओड़ रहा ना धन माया का।
बिछा बैड पे फूल रे पगले, क्यूं मस्ती में सोवै सै।।
मनमानी तूं करन लाग रहा, ओड़ रहा ना धन माया का।
बिछा बैड पे फूल रे पगले, क्यूं मस्ती में सोवै सै।।
सबने बुढापा कड़वा लागे, जैसे नीम की डाली रे।
खेत खा लिया चिड़िया ने, इब बेशक छोड़ रखवाली रे।
चालन की कर तयारी रे, यमदूत तनै टोहवै सै।।
खेत खा लिया चिड़िया ने, इब बेशक छोड़ रखवाली रे।
चालन की कर तयारी रे, यमदूत तनै टोहवै सै।।
सीसर आला बख्त उठ कै, मातपिता को नमन करै।
अनिल कुमार यो भक्त निराला, गुरु चरणों में शीश धरै।
ऊंच नीच ने भूल का बन्दे, क्यूं पाप की गठड़ी ढोवै सै।।
अनिल कुमार यो भक्त निराला, गुरु चरणों में शीश धरै।
ऊंच नीच ने भूल का बन्दे, क्यूं पाप की गठड़ी ढोवै सै।।