Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
हमने गुरु से मिलन रो घणो चाव, उमेदी गहरी लाग रही।
हमें उमेदी न्यू लगी जी, ज्यूँ निर्धनिया धन होय।
जैसे बांझ पुत्र बिन तरसे, मैं तरसूं गुरु तोय।।
हरि रूठें तो रुठ जाएं, म्हारे सद्गुरु रूठें नाय।
सद्गुरु म्हारे सन्त सामर्थ, हरि से वे देंगे मिलाय।।
सद्गुरु म्हारे सन्त सामर्थ, हरि से वे देंगे मिलाय।।
नाव पड़ी मझधार में, गुरु अधबिच गोता खाय।
सद्गुरु म्हारे बने खेवटिया, खेवैंगे पार लगाए।।
सद्गुरु म्हारे बने खेवटिया, खेवैंगे पार लगाए।।
सद्गुरु म्हारे समन्द हैं जी, हम गलियारो नीर।
बहतो नीर समन्द मिल जावै, कंचन भयो है शरीर।।
बहतो नीर समन्द मिल जावै, कंचन भयो है शरीर।।
सद्गुरु की कृपा हुई, म्हारो करो समन्द में सीर।
रामानन्द की फ़ौज में रे।
सन्मुख लड़ें हैं कबीर।।
रामानन्द की फ़ौज में रे।
सन्मुख लड़ें हैं कबीर।।