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guru se lagan kathin hai re bhai – kabir bhajan

kabir

Kabir Ke Shabd

गुरु से लग्न कठिन है रे भाई
लग्न लगे बिन कारज नहीं सरही,जीव प्रलय हो जाई ।
जैसे पपीहा प्यासा बून्द का,पीहू-2 टेर लगाई
प्यासे प्राण तड़प दिन राति,और नीर न भाई
जैसे मृगा शब्द स्नेही,शब्द सुनन को जाइ
शब्द सुने और प्राण दान दे ,तन की रहे शुद्ध नहीं।
जैसे सती चढ़ी सत ऊपर ,Lपिया की राह में भाई।
दो दल सन्मुख आंन डटे हैं सूरा लेट लड़ाई
टूक-2हो गिरे धरन मे खेत छोड़ ना जाए।।

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