Kabir ke Shabd
गुरू मेहर करै जब, कागा से हंस बनादे।
जब गुरुआं की फिर जा माया, पल में काज पलट दें काया।
गुरु सिर पे करदें छाया, पल में शिखर चढा दें।।
कव्वे से कुरड़ी छुटवाकर, मानसरोवर पर ले जाकर।
तुरंत काग से हंस बनाकर, मोती अनमोल चुका दे।
पुत्तर प्यारा बहुत माँ का, उनसे बढ़कर शिष्य गुरुआं का।
फेर ना बेरा पट जाता, कुछ तैं वे कुछ बना दें।
कोड़ी से गुरू हीरा बनादे, कंकर से कर लाल दिखादे।
कांसीराम चरण सिर ना दे, हुक्म करै पद गावै।।