Kabir Ke Shabd
गुरु बिन घोर अँधेरा रे साधो भाई
जैसे अगन बसे पाथर में,नहीं पाथर को बेरा हो जी
गुरु गम चोट पड़े पत्थर पे अगन फिरे चौफेरा हो जी
जैसे मृगा नाभि कस्तूरी,नहीं मृगा को बेरा हो जी
व्याकल हो बन-2 में डोले,सुंघा घास घनेरा हो जी
जब तक कन्या रहे क्वारी,नहीं प्रीतम का बेरा हो जी
आठों पहर रहे आलस में,खेला खेल घनेरा हो जी
कह कबीर सुनो भाई साधो,गुरु चरण चित्त मेरा हो जी
रामानंद गुरु मिले पुरे,जागा भाग भलेरा हो जी