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कृतज्ञ और कृतघ्न

कृतज्ञ और कृतघ्न

एक बार एक राजा अपने मंत्री से बोला – हमें कृतज्ञ नमक हलाल और कृतघ्न ( नमक हराम) दोनों तरह के व्यक्तियों को देखने की इच्छा हो रही है। मंत्री बोला -स्वामी! मुझे एक माह का समय दीजिए मैं दोनों प्रकार के व्यक्ति आपकी सेवा में उपस्थित कर दूँगा। मंत्री राजा को तो आश्वासन दे आया परन्तु स्वयं विचार करने लगा कि अब मुझे क्या करना चाहिए?
मंत्री जब घर पर पहुँचा तो उसकी योग्य बेटी ने अपने पिता का उदास चेहरा देखकर पूछा – पिताजी क्या बात है? आज आपका चेहरा उदास क्‍यों है? मंत्री ने बताया – राजा ने नमक हराम और नमक हलाल दोनों तरह के व्यक्ति माँगे हैं। पत्नी ने उत्तर दिया – मैं आपको दोनों तरह के व्यक्ति दे दूँगी। आप चिन्ता न करें। अवधि समाप्त होने पर मंत्री की पुत्री ने अपने पिता श्री को दो बड़े सन्दूक दिये जिनमें से एक में अपने पति को और दूसरे में एक कुत्ते को बैठा रखा था।
उसने अपने पिता को सारी बातें भी समझा दीं। जब मंत्री ने राजा के सामने दोनों सन्दूकों को खोला तो राजा ने एक सन्दूक में कुत्ते को देखकर पूछा – यह क्‍या बदतमीजी है? मंत्री ने बताया – महाराज! यह कृतज्ञ ( नमक हलाल ) प्राणी है। जो इसका पालन पोषण करता है यह उसके लिए अपने प्राण भी न्‍्यौछावर कर देता है।
जब राजा की दृष्टि मंत्री के दामाद पर पड़ी तो राजा ने पूछा – यह कौन है? मंत्री ने बताया यह एक कृतघध्न ( नमक हराम) व्यक्ति इसे मैंने अपनी पुत्री के साथ साथ खूब धन दिया, परन्तु फिर भी यह अकड़कर बातें करता है। राजा ने कहा – अच्छा यह बात है। इसे आज से एक माह बाद फाँसी लगेगी।
मंत्री उदास होकर भारी हृदय से घर गया तो बेटी ने उनसे उदासी का कारण पृछा। पिता ने अपनी बेटी को सारी बातें बता दीं। बेटी ने कहा – चिंता की कोई बात नहीं है। मैं सब ठीक कर लूँगी। जिस दिन फाँसी दी जानी थी, उस दिन फाँसी देने के स्थान पर हजारों फॉसियाँ लटक रही थीं।
उनमें से एक सोने की और चाँदी की फॉसी भी वहाँ पर थी। राजा जब फॉसी घर पर आये तो अनेक फाँसियों को  देखकर उसने मंत्री से कहा – यह क्‍या बवाल है? मंत्री ने कहा कि हम सभी किसी न किसी के दामाद (जमाई ) हैं। अतः हम सब को फाँसी लगनी चाहिये। यह सोने और चाँदी की फाँसी लटक रही है वह आपके और मेरे लिए हैं। मंत्री की इस योग्यता पूर्ण बात पर राजा अति प्रसन्न हुए और मंत्री को बहुत सा पुरस्कार प्रदान किया।
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