ईश्वर हैं या नहीं – God is exist or Not
Gautam Budh story in Hindi
एक बार भगवान बुद्ध के पास मोलुक पुत्त नाम का एक दार्शनिक आया। उसने पूछा क्या ईश्वर है? तो बुद्ध बोले, सच में तूं जानना चाहता है या यूं ही समय बर्बाद कर रहा है?
दार्शनिक को इस बात से चोट लगी। उसने कहा सच में ही जानना चाहता हूँ। कहीं हजारों मील से यात्रा करके कोई यूँ ही नहीं आता। बुद्ध ने कहा तो फिर दांव पर लगाने के लिए माल है कुछ। मोलूकपुत्त को और चोट लगी इस बात से।
उसने कहा सब कुछ लगा दूंगा दांव पर। मौलुक पुत्त सोच में पड़ गया कि बहुत कुछ सुना था बुद्ध के बारे में, पर यहां तो ये अजीब ही बातें कर रहा है। बुद्ध ने कहा दांव पर लगाने के लिए कुछ है?
मौलुकपुत्त ने कहा सब कुछ लगा दूंगा दांव पे। मैं एक क्षत्रिय हूँ। मुझे चुनौती न दें। बुद्ध ने कहा , चुनौती देना ही मेरा काम है। तूं इतना कर दो साल चुपचाप मेरे पास बैठ। दो साल कुछ मत बोलना, कोई प्रश्न नहीं, कोई जिज्ञासा नहीं, कोई बात नहीं। दो साल जब पूरे हो जाएंगे तो तेरे सवाल का जवाब मैं खुद दूँगा।
मौलुकपुत्त डर गया। क्योंकि क्षत्रिय अपनी जान तो दे सकता है। मगर दो साल चुप बैठे रहना मुश्किल है। कई बार जान देना आसान होता है और छोटी छोटी चीजें करना मुश्किल। अब मोलुकपुत्त फँस चुका था। क्योंकि वह जुबान दे चुका था कि वह सब कुछ लगा देगा। तो वह इस बात से मुकर नहीं सकता था। वह जैसे ही राजी हुआ,
एक भिक्षु जोर जोर से हंसने लगा। मौलुक पुत्त ने पूछा, आप हँस क्यों रहे हैं। उसने कहा मैं भी ऐसे ही आया था पूछने कि ईश्वर है या नहीं? तो मुझे भी बुद्ध ने दो साल चुप रहने को कहा।
मैं तुझे चेतावनी दे रहा हूँ पुछना है तो अभी पूछ ले, बाद में नहीं पूछ सकेगा। बुद्ध ने कहा मैं अपने वादे को पूरा करूंगा। पूछोगे तो जवाब दूँगा। दो साल बीते और बुद्ध नहीं बोले।
दो साल बीतने पर बुद्ध ने कहा, मौलुकपुत्त अब खड़े हो जाओ और पूछ लो मोलुक पुत्त ने कहा भिक्षु ने ठीक कहा था दो साल चुप रहने पर ऐसी गहराई आई, चुप रहते रहते ऐसा बोद्ध जमा, चुप रहते रहते ऐसा ध्यान लगा,चुप रहते रहते विचार धीरे धीरे खो गए।
दूर दूर की आवाजें मालूम होने लगी। फिर वर्तमान में ऐसी डुबकी लग गई। बस आप के चरण छूना चाहता हूँ। उत्तर मिल गया। अब प्रश्न नहीं पूछना।
इस कहानी का यही सार है। प्रश्न पूछने से उत्तर नहीं मिलते। शुन्य से मिला है उत्तर। और जो उत्तर मिलता है वही परमात्मा है। और चारों ओर वही दिखाई देता है। अभी तुम पूछते हो, परमात्मा कहाँ है। फिर तुम पूछोगे परमात्मा कहाँ नहीं है।
महात्मा बुद्ध की कहानियां हमें इस दुनिया से दूर किसी और आवाम में ले जाती हैं। जब तक मन में शांति न होगी तब तक जीवन में कुछ भी खुशी मिल जाए सब बेकार है।
धन्यवाद।
संग्रहकर्त्ता उमेद सिंह सिंगल।