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ईश्वर है – आत्मविश्वास की गहराई” (God Exists – The Depths of Self-Belief)

ईश्वर है

एक नगर में एक नास्तिक व्यक्ति रहता था। उसकी धर्म पत्नी धार्मिक विचारों की महिला थी। वह प्रतिदिन पूजा पाठ किया करती थी। अपनी पत्नी के इस पूजा पाठ के कर्म को देखकर उसे बड़ा बुरा लगता था। वह बार-बार अपनी पत्नी को समझाता कि ईश्वर नाम की कोई वस्तु नहीं है। यह सब ढोंगी ब्राह्मणों द्वारा फैलाया गया माया जाल है।
इतना सब कुछ कहने के पश्चात्‌ भी उसकी पत्नी अपने पूजा पाठ के कार्य को किसी न किसी समय कर ही लेती थी। वह प्रभु से प्रार्थना करती थी कि उसके पति को सदबुद्धि प्रदान करें। उसके पतिदेव बड़ी-बड़ी सभाओं में जड़वाद के ऊपर लम्बे-चौड़े भाषण दिया करते थे। 
A sweet union of science and religion: Exploring new avenues to understand God's existence
परन्तु जब वह भाषण देकर घर आता तो यहाँ पर उनके सिद्धांत के विरुद्ध कार्य देखने को मिलता था। कभी कभी तो उसके मित्र ही उससे कहा करते थे कि नेताजी महाराज आपका सिद्धान्त तो आपके घर में नहीं लागू होता फिर बाहर वालों से कैसे आशा करते हो? 
भगवान की अनुकम्पा से जब उनका बेटा बड़ा हो गया तो वह भी अपनी माता की देखा-देखी पृजा पाठ करने / लगा। जब बालक के पिता ने देखा तो उसे बहुत बुरा लगा।
वह अपने बेटे को समझाते हुए कहने लगा – बेटा! तुम जिस ईश्वर की पूजा करते हो, वह ईश्वर नाम की कोई  वस्तु नहीं है। लड़के ने कहा – पिताजी! यदि ईश्वर नहीं है तो यह संसार किसने बनाया? पिता बोला – जिस प्रकार बीज का पृथ्वी, जलवायु से समिश्रण होता है तो वृक्ष पैदा होता है और फिर उसमें फूल लगते हैं और फूल में बीज। जिस प्रकार गोबर, कीचड़ से कीड़ा, काँटे से गुलाब उत्पन्न  होता है, इसी प्रकार से पृथ्वी, जलवायु, आकाश आदि के समिश्रण से संसार की सभी वस्तुएँ बन जाती हैं। 
पिताजी की बात सुनकर बेटा चुप हो गया। उसके मन  ही मन विचार करते हुए कई दिन बीत गये। एक दिन वह द्वार पर बैठा हुआ इसी विचार में मग्न था कि भगवान की कृपा से कोई महात्मा उधर आ निकले। उस लड़के की निगाह उन महात्मा जी पर पड़ी। उसने सोचा कि ये महात्मा तो योग्य प्रतीत होते हैं। ये मेरी शंका का समाधान कर सकते हैं। 
महात्माजी के नजदीक आते ही फौरन लड़के ने उनके चरणों में प्रणाम करके उनको बैठने के लिए आसन प्रदान किया। फिर उसने अपने पिता के विचारों को महात्माजी के सम्मुख रखा। महात्माजी लड़के के ऊपर अति प्रसन्न हुए भी और बोले – बच्चे। इसका एक सीधा सा उत्तर है कि जिस प्रकार चित्र बनाने की सभी सामग्री एकत्र करने पर बिना मनुष्य की हस्त फ़रिया के चित्र नहीं बन सकता, उसी प्रकार संसार बनाने वाले ईश्वर के बिना संसार का निर्माण नहीं हो सकता। यह कहकर महात्माजी अपने गंतव्य स्थान को चले 
लड़के की समझ में बात बैठ गईं उसने दूसरे दिन एक मेज पर कागज, रंग, ब्रुश आदि सामान रख दिया और उसके पास में एक सुन्दर चित्र भी रख दिया। जब पिताजी बाहर से आये तो बोले-यह चित्र किसने बनाया है? लड़का बोला – पिता श्री! ये सभी चीजें रखी हुई हैं। वायु के कारण यह चित्र स्वयं बन गया।
इसी प्रकार ! दूसरे कागजों पर भी चित्र बन जायेंगे। उसके पिताश्री बोले – किसी बनाने वाले के बिना यह इतना सुन्दर चित्र नहीं बन सकता । तब बेटा बोला-पिता श्री ! जब चित्र ही किसी बनाने वाले के बिना नहीं बन सकता तो यह संसार भी बिना किसी बनाने वाले के स्वयं नहीं बन सकता। जो संसार का निर्माण करता है, उसके अनुशासन में ही संसार के सभी कार्य व्यवस्थित रूप में चलते रहते हैं। अब पिताश्री की समझ में आ गया कि ईश्वर नाम की कोई वस्तु है।
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