सृष्टि ईश्वर रचित है
परमाणु से सृष्टि की रचना कभी न होय।
सृष्टि रचियता ईश्वर, दूजा नहीं कोय॥ .
किसी शहर में प्रभुदयाल नाम के वकील रहते थे। वकील साहब तर्क प्रिय स्वभाव के थे। अंग्रेजी भाषा पढ़ी होने के कारण उनका विश्वास हिन्दू धर्म से उठ गया था। उनका विश्वास था कि सृष्टि ईश्वर रचित न होकर परमाणुओं के एक जगह मिल जाने से संसार की रचना हुई है।वकील साहब तर्कवादी थे परन्तु उनका बेटा राम किशोर धार्मिक, श्रद्धा एवं तर्क से दूर था। वकील साहब को किसी वस्तु की आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने अपने पुत्र राम किशोर को आवाज दी। रामकिशोर ने उत्तर दिया, पिताजी अभी आता हूँ।
वकील साहब बेटे की प्रतीक्षा में आधा घंटे बैठे रहे, तब वह आया। लड़के को देखकर बोले, तुम क्या कर रहे थे जो आने में इतनी देर लग गई?
बेटे ने उत्तर दिया–मैं ठाकुर जी की आरती कर रहा था। वकील महोदय अचम्भित होकर बोले – ठाकुर क्या चीज है? उसके उत्तर में उनके बेटे राम किशोर ने कहा कि ठाकुर जी सृष्टि के रचियता भगवान हैं।
यह सुनकर क्रोध में भरकर वकील साहब बोल उठे कि राम किशोर तुमने मैट्रिक पास करने में यों ही दस वर्ष बेकार कर दिये, परन्तु दकियानूसी हिन्दू धर्म की बू तुम्हारे दिलो दिमाग से नहीं गई। क्या ईश्वर की भी कोई सत्ता है? राम किशोर ने कहा–पिताजी यदि आपकी दृष्टि में शृष्टि बनाने वाला ईश्वर नहीं है तो इसका निर्माण करने वाला कौन है?
वकील महोदय ने कहा कि सृष्टि के प्रारम्भ में परमाणु आकाश मण्डल में विचरण करते रहते थे। एक स्थान में बहुत से परमाणु एकत्र होने से सृष्टि का निर्माण हुआ। मुझे नहीं मालूम कि इस संसार रचना करने में ईश्वर को कल्पना करने की आवश्यकता है?
इतने में नौकर ने आवाज लगाई कि खाना तैयार है। बेटे को भी मौका मिल गया और वह यह कहकर उठ खड़ा हुआ कि पिताजी आप भोजन करिये, सृष्टि पर चर्चा कल कर लेंगे। अगले दिन वकील साहब का बेटा राम किशोर कॉलिज में गया । पढ़ना लिखना बन्द करके उसने एक बहुत खूबसूरत तस्वीर बनाई और उसमें तरह-तरह के रंग-भरकर उसे सजाया। रंग भरने के बाद राम किशोर ने उस चित्र को अपने पिता वकील प्रभुदशल के कमरे की खिड़की वाली मेज पर रख दिया
और खिड़की में लाल, हरे, पीले रंग की ‘ पेंसिल रख दीं। शाम को वकील साहब अपने कमरे में आए तो तुरन्त सुन्दर चित्र को देखा तो आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने तुरन्त अपने पुत्र राम किशोर को आवाज दी और पूछा -यह खूब सूरत चित्र किसने बनाया है? राम किशोर मुस्कराते हुए बोला-पिताजी यह चित्र किसी ने नहीं बनाया अपितु अपने आप हो बन गया। पूर्व दिशा में एक कागज रखा था और पश्चिम दिशा में पेंसिल रखी थी। जैसे ही पश्चिम से हवा चली वैसे ही पंसिलों के परमाणु इस कागज पर आकर जम गए जिस कारण इस चित्र का निर्माण हो गया।
वकील साहब झेंपते हुए बोले-हमको बनाओ मत, हम भी कुछ पढ़े लिखे हैं। ये कभी सम्भव नहीं हो सकता कि लाल परमाणु सब एक ही स्थान पर जमा हों और हरे रंग के परमाणु किसी दूसरे स्थान पर तथा जड़ परमाणओं में इतना ज्ञान कहाँ?
हम दावे से कह सकते हैं कि यह चित्र परमाणुओं द्वारा रचित नहीं बल्कि किसी बुद्धिमान व्यक्ति का काम है। उनके बेटे राम किशोर ने कहा कि यदि तस्वीर अपने आप नहीं खिच सकती तो संसार भी अपने आप निर्मित नहीं हो सकता। जब आपके मन में परमाणुओं से तस्वीर नहीं बन सकती बल्कि किसी बुद्धिमान मनुष्य द्वारा बनाई गई है तो उसी प्रकार ‘मेरा भी दावा है कि यह समस्त सृष्टि परमाणु द्वारा रचित नहीं, बल्कि ईश्वर द्वारा रचित है, जिसकी कल मैं आरती कर रहा था। अब आप ईश्वर न होने का खण्डन करिये, कैसे करेंगे? यह तर्क सुनकर वंकील महोदय चुप हो गये।
कहने का तात्पर्य यह है कि वर्तमान काल में बहुत से विदेशानुरागी स्वदेश विरागी सजन जो संस्कृत साहित्य से सौ फुट दूर रहते हैं और धर्म कर्म को त्यागना चाहते हैं, वे संसार को कर्त्ता रहित सिद्ध करना चाहते हैं और जड़ पदार्थो को संसार का कर्त्ता मानकर अपनी नास्तिकता का परिचय देते है ।