गाडी वाले का ज्ञान
एक बड़ा दानी राजा था उसका नाम या जानश्रुति | उसने इस आशय से कि लोग सब जगह मेरा ही अन्न खायेंगे, सर्वत्र धर्मशालाएँ बनवा दी थी और अन्न-सत्रद्ददि खोल थे । एक दिन रान्नि में कुछ हंस उडकर राजा केमहल की छत पर जा बैठे है उनमें से पिछले हंस ने अगले से कहा – अरे ओ भह्वाक्ष । औ भछाक्ष । देख , जानश्रुति का तेज द्युलोकके समान फैला हुआ है । कहीं उसका स्पर्श न कर लेना, अन्यथा वह तुझे भस्म कर डालेगा । ‘ इस पर दूसरे ( अग्रगामी ) हंस ने कहा -बेचारा यह राजा तो अत्यंत तुच्छ है, मालूम होता है तुम गाडीवाले राजा को नहीं जानते । इसीलिये इसका तेज उसकी अपेक्षा अत्यल्य होनेपर भी तुम इसकी वैसी प्रशंसा कर रहे हो इसपर पिछले हंसने पूछा -भाई गाडी- वाला रैक कैसा है ‘ अगले हसने कहा भाई उस रैक की महिमा का क्या बखान क्रिया जाय , जुआरी का जब पासा पडता है, तब जैसे वह तीनों को जीत लेता है, इसी प्रकार जो कुछ प्रजा शुभ कार्य करती है, वह सब रैको को प्राप्त हो जाता है है वास्तवमें जो तत्व रैक जानता है , उसे जो भी जान लेता है ८ वह वैसा ही फल प्राप्त करता है । ‘ जानश्रुति इन सारी बातो को ध्यानसे सुन रहा था । प्रात :काल उठते ही उसने आने सेवकों को बुलाकर कहा -……’तुम गाडी वाले रैक कि पास जाकर कहो कि राजा जानश्रुति उनसे मिलना चलता है । ‘ राजाके आज्ञानुसार सर्वेत्र खोज हुई, यर रैक का कहीं पता न चला । राजा ने विचार किया कि जब सब ने रैक की ग्रामों तथा नगरों मे ही ढूँढा है और उनसे पुन कहा कि ‘अरे जाओ उन्हें ब्रह्मवेत्ता के रहने योग्ये स्थानों ( अरण्य, नदीतट आदि एकान्त स्थानों ) में ढूंढो। अत्त में वे एक निर्जन परदेस में गाडी के नीचे बैठे हुए शरीर खुजलाते हुए मिल ही गये रजपुरषो ने पूछा-‘प्रभो क्या गाड़ी वाले रैक आप ही है मुनिने हा मैं ही हूँ । ‘पता लगने पर राजा जानश्रुति छ” सौ गौएँ, एक हार और एक खाचरियो से लता हुआ रथ लेकर उनके पास गया और बोला … “भगवन मैं यह सब आपके लिये लाया हूँ कृपया आप इन्हें स्वीकार की जिए तथा जिस देवता की उपासना करते हैं, उसका मुझे उपदेश कीजिये । ‘राजा की बात सुनकर मुनि ने कहा -अरे शूद्र । ये गायें,
हार और रथ तू अपने ही पास रख ‘ यह सुनकर राजा घर लोट आया और पुन: दूसरी बार एक सहस्र गायें , एक हार,एक रथ और अपनी पुत्री को लेकर मुनि के पास गया और हाथ जोड़कर कहने लगा -भगवन। आप इन्हें स्वीकर करें और अपने उपास्य देवता का मुझे उपदेश दें । ‘ मुनिने कहा -हें शूद्र तू फिर ये सब चीजें मेरे लिये लाया है ‘ ( क्या इनसे ब्रह्मज्ञान खरीदा जा सकता है ) राजा चुप होकर बैठ गया । तदनन्तर राजाको धनादि के अभिमान से शून्य जानकर उन्होंने ब्रह्म विद्या का उपदेश दिया। जहाँ रैक मुनि रहते थे, उस पुण्य प्रदेश-का
नाम रैकपर्ण हो गया ।