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दो और तीन का झगड़ा

दो और तीन का झगड़ा

एक पंडितजी किसी यजमान के यहाँ से पाँच लड॒ड़ लाये।जब उन लड्डुओं को वे घर लाये तो उनकी पत्नी कहने लगी, तीन लड्डू मैं खा लूँंगी और दो लड्डू आप खा लेना। पंडितजी बोले वाह! लड्डू में लाया हूँ इसलिए तीन लड्ड़ में खाऊंगा और दो तुम खा लेना। इस बात  पर काफी देर तक उनमें वाद-विवाद होता रहा। अन्त में यंह तय हुआ कि जो पहले बोलेगा वही दो लड्डू खायेगा। इसका परिणाम यह हुआ कि दोनों पति-पत्नी घर का मुख्य दरवाजा बंद करके अलग-अलग चारपाई पर सो गये। इस प्रकार दो दिन व्यतीत हो गये परन्तु दोनों में से कोई भी नहीं बोला।

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तब पड़ोसियों ने घर के दरवाजे के किवाड़ तोड़कर अन्दर प्रवेश किया तो दोनों की आँखें खुले हुए देखा। वे समझे दोनों की मृत्यु हो गई है। कफन आदि मंगाकर अर्थी पर एक साथ लिटाकर लेकर चल दिये। इतना होने पर भी दोनों में से कोई नहीं बोला। श्मशान घाट में दोनों को एक ही चिता पर लिटा दिया गया ।लोग कहने लगे पहले आदमी को मुखाग्नि देनी चाहिए। जैसे ही आग लगाने की तैयारी हुईं तो पंडितजी बोले अरी! कमबख्त रांड तू ही तीन लड्डू खा ले। यह सुनकर सभी लोग आशएचर्य चकित रह गये। जब सब लोगों को बात पता चली तो स्त्री की दृढ़ता की सभी मुक्त कंठ से प्रशंसा करने लगे।
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