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Ek Din Ude Taal – Kabir Bhajan

Ek Din Ude Taal Kabir Bhajan


Kabir Ke Shabd

एक दिन उड़ें ताल के हंस फेर नहीं आवेंगे
लीपें सवा हाथ में धरती काटें बांस बनावे अर्थी
संग चले ना तेरे धरती,वे चार उटावेंगे
या काया तेरी खाक में मिलेगी,जब ना तेरी पेश चलेग
हाँ जिस में हरी-2 घास उगेगी ढोर चर जावेंगे
बिस्तर बांध कमर हो तगड़ा सीधा पड़ा मुक्त का दगड़ा
इस में नहीं है कोई रगड़ा,न्यू मुक्ति पावगें
जो कुछ करीआप ने करनी वो तो अवश्य होगी भरनी
ऐसी वेदव्यास ने वरनि, कवी कथ गावेंगे
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