Kabir ke Shabd
एक बार तूँ जीवत मर ले, फिर बार बार नहीं मरना रे।।
धीरज धर मन रोक ठिकाने, पाँचों को वश करना है।।
नाम की नोका बैठ सम्भल के, गुरू ज्ञान से तरना है।
सुखमना राही पकड़ दृढ़ से, सम्भल सम्भल के चलना है।।
दिल के अंदर जमा दृष्टि, ध्यान गुरु का धरना है।।
चिंता भागे मिले शान्ति, आनन्द के बीच विचरना है।।
सद्गुरु ताराचंद समझावै कंवर ने, सब तीर्थ गुरु के चरणां है।।