Kabir ke Shabd
मत लूटै हंस रस्ते में,उड़ै तनै कौन छूड़ावेगा।।
आदम देही धार कै तूँ, गया ईश्वर ने भूल।
ओछे मन्दे काम करे तनै, खो दिया ब्याज और मूल।
खो दिया ब्याज और मूल, गुरु बिन न्यू ए जावैगा।।
बाजी खेलै पाप की रे, पौह पे अटकी सार।
सत्त का पासा फैंक बावले, उतरे भँव जल पार।
उतरे भँव जल पार, गुरू बिन धक्के खावैगा।।
विषयों में तूँ फँसा रहे, और पड़ा रह बीमार।
सिर पे गठड़ी पाप की रे डूबेगा मझधार।
डूबेगा मझधार कर्म ने, कड़े छुपावेगा।।
तृष्णा में तूँ लगा रहे, तनै नहीं धर्म की जान।
मन विषयों में फंस रहा, तेरी कुत्ते बरगी बाण।
तेरी कुत्ते बरगी बाण, इस मन ने कद समझावैगा।।
झोली पे झगड़ा हुआ रे, पच पच मरा जहान।
कह कबीर सुनो भई परसा, धर के देखो ध्यान।
धर के देखो ध्यान भजन बिन खाली जावैगा।