संसार मे कौन बड़ा है ?
अपने-अपने चित्त में सभी बड़े बलवान।
भगत बड़े भगवान से कहते खुद भगवान॥
एक बार इलाहाबाद के पवित्र तट पर एक विचित्र सभा हुई। सबसे पहले पृथ्वी ने खड़े होकर बताया कि मैं सबसे बड़ी हूँ, क्योंकि मैंने सम्पूर्ण भूमण्डल को धारण कर रखा है। इतने में शेष नाग ने पृथ्वी से पूछा तू सबसे बड़ी कैसे हुई, सबसे बड़ा तो मैं हूँ क्योंकि मैंने अपने फन पर तुझे बैठा रखा है। इस पर शिवजी ने शेषनाग से कहा तू बड़ा कैसे हुआ, बड़ा तो मैं हूँ क्योंकि तू मेरे गले में माला के रूप में पड़ा हुआ है।
इस पर कैलाश पर्वत बोले–वाह भोले बाबा वाह! आप कैसे बड़े हुए? बड़ा तो मैं हूँ क्योंकि मैंने आपको परिवार सहित अपने ऊपर बैठा रखा है। इतना सुनकर क्रोध में भरकर रावण बोला–हे कैलाश पर्वत! तू कैसे बड़ा हुआ, बड़ा तो मैं हूँ क्योंकि मैंने तुझे भी अपने हाथों पर उठा लिया था। रावण की बात सुनकर बाली ने रावण को डाँटते फटकारते हुए कहा–तू कैसे बड़ा है?
बड़ा तो मैं हूँ क्योंकि मैंने तुझे छः: माह तक अपनी कोख में दबाये रखा था। बाली की बात सुनकर भगवान श्री राम बोले-तुम कैसे बड़े हुए, बड़े तो हम हैं क्योंकि मैंने तुम्हें एक ही बाण में यमलोक भेज दिया था। इतने में भगवान राम का एक भक्त खड़ा होकर हाथ जोड़कर बोला-भगवन्! आप कैसे बड़े हुए, बड़े तो हम भक्त लोग हैं, जिन्होंने आप से भी सेवा करा ली।
यह सुनकर सारी सभा में सन्नाटा छा गया और भगवान श्री राम मुस्कराते हुए बोले–वत्स! तुम ठीक कहते हो। मैं संसार में किसी के भी बन्धन में नहीं आता, परन्तु मेरे भक्तों को यह गौरव प्राप्त है कि वह जहाँ चाहे जब मुझे अपनी अन्तरात्मा की प्रेम भरी आवाज से बुला लेते हैं। तब मैं अनेक कठिन से कठिन कार्य को स्वयं करके उनकी सारी विपत्तियों को दूर कर देता हूँ।
बन्धुओं! इस ऊपर वर्णित दृष्टान्त का सारांश यह है कि मनुष्य स्वयं बड़ा बनने के लिए चाहे कितनी ही सम्पत्ति एवं शारीरिक शक्ति लगा दे परन्तु बिना धर्मशील हुए या बिना भगवद् भक्ति के कदापि बड़ा नहीं बन सकता है।