भगवत प्रेम
एक विलासी राजा के पास एक राज्य भक्त मंत्री था। राजा अपनी रानियों के साथ रंग रेलियाँ मनाता हुआ इतना मस्त रहता था कि उसे राज्य के कार्यो की तनिक भी चिन्ता नहीं थी। उसके मंत्री को किसी भी कार्य के लिए राजा के यहाँ घण्टों प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। एक दिन उस मंत्री ने दुःखी होकर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और वन में जाकर तपस्या करने लगा।
मंत्री के चले जाने से राजा के सभी काम रुक गये। राजा ने सोचा कि मंत्री के बिना काम नहीं चलेगा। राजा मंत्री को ढूँढ़ने जंगल में गया। मंत्री को खोजकर राजा ने उससे चलने को कहा। राजा से मंत्री ने कहा–महाराज! जिस काम के लिए आप जैसे मेरे पास आ सकते हैं, में भी इस काम को छोड़कर कैसे जा सकता हूँ। एक समय वह भी था जब मैं पहले आपके पास जाता था। अब आप स्वयं ही मेरे पास आये हैं। अत: में अब भगवत प्रेम को छोड़ नहीं सकता।