Search

ढपोल शंख

ढपोल शंख

एक गरीब ब्राह्मण गरीबी से परेशान होकर विदेश में धन पैदा करने की दृष्टि से गया। रास्ते में जब उसे भूख लगने लगी तो समुद्र के किनारे बैठकर भोजन करने लगा। वह दुखी मन से भोजन कर रहा था तो उसी समय समुद्र के देवता समुद्र से निकल कर प्रकट हुए और ब्राह्मण का हाल जानकर उन्होंने उसे एक शंख देकर कहा – फर्श को गोबर से लाप कर उस पर इस शंख को स्थापित कर इससे तुम जो याचना करोगे वह तुम्हें यह प्रदान करेगा। 
ब्राह्मण ने फर्श को गोबर से लीपकर धूप लगाकर शंख को स्थापित किया और उससे एक हजार रुपये मांगे। शंख ने उसे तुरन्त एक हजार रुपये प्रदान कर दिये। रास्ते में रात्रि में जब उन्हें रूपये की आवश्यकता पड़ी तो उसने शंख की पूजा कर उससे रुपये माँगे।
यह सभी दृश्य धर्मशाला का स्वामी भी देख रहा था। धर्मशाला क स्वामी ने उस शंख को चुरा लिया और दूसरा शंख रख दिया। जब ब्राह्मण देवता को रुपयों की आवश्यकता पड़ी तो शंख की पूजा करके उससे रुपये माँगे परन्तु शंख बदला जाने के कारण उसे रुपये नहीं मिले।
ब्राह्मणदेव समझ गये कि यह सब धर्मशाला के स्वामी का करा धरा है। उसने शंख बदल दिया है। ब्राह्मण देव दुखी हृदय से फिर से समुद्र के किनारे जाकर रोने लगा। समुद्र देवता समुद्र से निकलकर प्रकट होकर बोले – अब क्यों रो रहे हो? ब्राह्मणदेव ने सारा वृतान्त समुद्र के देवता को बता दिया। अबकी बार देवता ने दूसरा शंख दिया जिसका नाम ढपोल शंख था। यदि इस शंख से एक हजार रुपये मागे जाते तो बड़े जोर से वह कहता कि अरे भाई, दस हजार लो। परन्तु देता कुछ भी नहीं था।
वह ब्राह्मण देवता लौटकर उसी धर्मशाला में ठहरा और शंख से एक हजार रुपये माँगे। शंख ने बड़े जोर से कहा – दस हजार रुपये लो। धर्मशाला के स्वामी ने इस शंख को देखकर पहला वाला शंख ब्राह्मण के पास रखकर दूसरा शंख उठा लिया। जब उसने ढपोल शंख से रुपये माँगे तो वह दस गुने रुपयों का नाम तो लेने लगा, परन्तु दिया कुछ भी नहीं । धर्मशाला के स्वामी ने क्रोध में भरकर इसको तोड़ कर फेंक दिया।
Share this article :
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply

CALLENDER
September 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
30  
FOLLOW & SUBSCRIBE