संत की परिभाषा
गुरबाणी के अनुसार संत कौन है ?
हम इस विषय में विचार करने से पहले संक्षेप में सिख इतिहास के कुछ पन्ने पलटते हैं जिसमें कहीं भी गुरुओं के इलावा किसी संत, महापुरुष, या ब्रह्मज्ञानी का जिक्र नहीं मिलता । केवल भाई मर्दाना, भाई मनी सिंह, बाबा दीप सिंह, बाबा बन्दा सिंह बहादर, भाई सुखा सिंह, भाई महताब सिंह, सुबेग सिंह, जस्सा सिंह, बघेल सिंह जैसे महान सिख हुए हैं, जिन्होंने गुरु ग्रन्थ साहिब जी रूपी गुरुओं, भगतों की विचारधारा को कायम रखने के लिये ना कहीं डेरे बनाये बल्कि गुरु की शिक्षा का प्रचार करते हुए अपनी तथा अपने परिवार को हजारों सिखों सहित कुर्बानियां दी । और सभी प्रभु से जुड़े हुए थे ।
परन्तु आजकल संत शब्द सुनकर हमारी छवि में सफेद चोला पहने, बड़ा डेरा बनाए, लंबी गाडी में घूमते, ऊँचे स्थान पर खाली बैठे और बढ़िया सा नाम जिसमे फलाने वाले और फलां नम्बर की डिग्री का जिक्र होता है, सहज ही उभर कर आती है । आज शायद पंजाब में ऐसा कोई गाँव या शहर बचा हो जहां ऐसे सन्तों, महापुरषों, ब्रह्मज्ञानियों का डेरा ना हो । जैसे जैसे इनकी संख्या बड़ रही है, वैसे वैसे नशा, अपराध, झगड़े, पतितपना भी बड़ रहा है । इन सन्तों का योगदान कुछ भी नहीं है, सिवाय कर्मकांडों को बढ़ावा देने से ।
गुरु जी की शिक्षा के अनुसार मनुष्य के हाथ में कुछ नहीं है । केवल और केवल एक परमात्मा ही है जो हमारी कामनाओं की पूर्ति कर सकता है । जो प्रभु को याद रखता है, जिसने उसके गुणों को पहचान लिया है, वो “संत” है ।
भगत फरीद जी का फरमान है :-
फरीदा काले मैडे कपड़े, काला मेडा वैस ।।
गुनही भरिआ मैं फिरा, लोकु कहै दरवेसु ।।
भगत फरीद जी का फरमान है :-
फरीदा काले मैडे कपड़े, काला मेडा वैस ।।
गुनही भरिआ मैं फिरा, लोकु कहै दरवेसु ।।