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धी का भला न धान- daughter’s paddy is not well

“धी का भला न धान” 

कन्या विक्रय जो करे, वो है धूर्त महान। 

शोख कवि ये सत्य है, धी का भला न धान ।।
आजकल प्राय: यह देखने में आ रहा है कि बहुत से व्यक्ति अपनी बेटी का विवाह वर पक्ष से रुपया लेकर करने लगे हैं। इस प्रकार जो व्यक्ति धन का संग्रह करता है, वह बहुत निन्दनीय है। इस विषय में एक कथा इस प्रकार है-
एक राजा की रानी ने अपने केशों को अपनी दासियों द्वारा साफ कराया। वह केशों को सुखाने के लिए बरामदे में खड़ी थी। उस बरामदे में चिड़िया ने घोंसला बना रखा था संयोगवश चिड़िया बाहर से आयी और उसने रानी के केशों पर बींट कर दी। इस पर रानी बहुत क्रोधित हो गई और रानी राजा साहब के मुँह चढ़ी होने के कारण आसन-पाटी लेकर लेट गई। उसने खाना-पीना भी त्याग दिया और अपनी दासियों से बोलना बंद कर दिया।
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रानी की यह दशा देखकर दासियाँ राजा के पास जाकर कहने लगीं कि रानी साहिबा ने खाना-पीना सब त्याग दिया है और आसन-पाटी लेकर पड़ी हैं। राजा दासियों की बात सुनकर रानी के पास जाकर बोले -प्यारी रानी साहिबा क्या बात है? बहुत अनुनय विनय के पश्चात्‌ रानी ने बताया कि मैंने अपने  केशों को दासियों से साफ करवाकर मैं बरामदे में केशों को सुखा रही थी कि ऊपर घोंसले में बैठी हुई चिड़िया ने उन पर बींट कर दी। 
यह सुनकर राजा ने रानी को समझाया कि पक्षी भला बुरा क्या जानें? दासियों से चिड़िया के घोंसले को हटवाकर दुबारे से अपने केशों को साफ करवा लो और भोजन कर लो। राजा ने नौकरों से घोंसले को उखड़वाकर बाहर फिकवा दिया। चिड़ियाँ चै-चै करती हुई महल के बाहर एक वृक्ष पर बैठकर विलाप करने लगीं।
इतने में चिड़ा भी आ गया और पूछने लगा कि क्या बात है? चिड़िया ने सारी बात बता दी। इस पर चिड़ा बोला चिन्ता न करो हम दूसरी जगह अपना घोंसला बना लेंगे। इस पर चिड़िया बोली- जब तक इस राजा का सर्वनाश न कर देंगे तब तक मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगी। 
चिड़ा बोला – ऐसी बात है, तो मैं राजा का अभी सर्वनाश कर देता हूँ। चिड़ा उड़ कर राजा की पुत्री जहाँ विवाही गई थी वहाँ गया और राजा की पुत्री के घर में से कुछ धान अपनी चोच में भर लाया और उन्हें राजा के धान में मिला दिया। परिणाम स्वरूप राजा का सर्वनाश हो गया। 
कहने का तात्पर्य यह है कि कन्या को बेचकर धन नहीं लेना चाहिए और न ही कन्या के घर की वस्तुओं को प्रयोग करना चाहिए। जिस वस्तु का हम दान कर चुके हैं, उसे वापिस नहीं लेना चाहिए। शास्त्रों का भी ऐसा ही मत है कि दान एक बार ही होता है दुबारा नहीं दी गई वस्तु को लेने का अधिकार दानी को नहीं है। 
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