सन्तोषम परम सुखम
अधिकतर मनुष्य अपनी वर्तमान परिस्थितियों में बहुत ही खिन्न और परेशान होते दिखाई देती है असंतुष्ट होकर निराशामायी भविष्य देखते रहते है वस्तुओं की कमी एंव परिस्थितियों की प्रतिकूलता के कारण जितना कष्ट होता है उससे कहीं अधिक नकारात्मक सोच से होता है ऐसे व्यक्तियों का मानसिक संतुलन ठीक न होने के कारण वे समस्याओं के निवारण का मार्ग भी नहीं खोज पते है वस्तुतः उनकी चिंता इस असंतोषमयी स्थिति के कारण सुधरने के बजाये ख़राब होती जाती है लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में जिन्होंने जान लिया है की सुख त्याग में है, दुःख कब्जे में है वे संतुष्ट है संतोष में ही सुख है वस्तुओं का रखरखाव करने वाला कभी सुखी नहीं रहता है क्योंकि उसे कमी ही दिखती रहती है, वह एक आभाव के पूरा होने पर दूसरा आभाव बाद तीसरे,चौथे और पाँचवे के लिए रोता रहता था कभी भी उसे सब कुछ नहीं मिल पता है आज अधिकतर व्यक्तियों की आन्तरिक स्थिति यही है वे जीते तो है पर कोई आनंद एंव संतोष का अनुभव नहीं करते है
संसार में मनोवांछित परिस्थितियों में सब कोई नहीं रह पता है हर एक को कोई न कोई आभाव रहता ही है यदि इसी कारण लोग असंतुष्ट रहने लगें तो फ़िर सारी दुनिया में एक भी व्यक्ति सुखी नहीं दिखाई देता, पर सोचो ऐशा नहीं है, अनेक मुसीबतों से से घिरे ऐसे व्यक्ति आज भी मौजूद है जो जीवन को संघर्ष मानकर यह लड़ई जितने के लिए निरंतर कोशिश करते रहते है साथ ही वर्तमान में जो कुछ भी सामने है उससे दुखी नहीं होते है उसे प्रभु की अनुकंपा मानकर अपना मन प्रसन्न रखते है और संतोष की साँस लेते हुए जीवन की यात्रा को आगे बढ़ते रहते है कुछ लोगों का कहना है की संतोष कर लेने से प्रगति रुक जाती है और उन्नति के प्रयतन कमजोर हो जाते है यह बातें अस्थिर मन वालों के ऊपर लागु होती है विवेकशील व्यक्ति अपने जीवन को कभी क्रमबद्ध व्यवस्था के रूप में विनार्मित करते है और वे अच्छी तरह से जानते है कि असंतुलित खिन्न और उद्विग्न मन से कुछ कर सकना तो कुछ सोच सकना भी कठिन है इसलिए हमें संतुष्ट रहना चाहिए आज जो हमारे पास है उसके लिए प्रभु को धन्यवाद देना चाहिए