Kabir ke Shabd
चुंदड़िया ओढ़न वाली हे, तूँ मतना ठगावै मौल।
चुन्दड़ का रंग न्यारा-२, कैसे ही करके ओढ़।।
गहरी-२ नदियां नाव पुरानी, तरना किस विधि होय।
जब म्हारे सद्गुरु बने मलाहा, सहजै तरना होय।।
जब म्हारे सद्गुरु आए आँगने, मैं पापन गई सोय।
मैं जानू मेरे सद्गुरु आवेंगे, दीपक देती जोय।।
इस निंद्रा ने बेच दूं हे, जो कोय गाहक होय।
जुगत पालड़े तोल दऊँ हे, दमड़ी का मन दोय।।
जब म्हारे सद्गुरु बने मलाहा, वाहे गुरू-२ होय।
कह कबीर सुनो भई साधो, धुर ललकारा होय।।