चेचक का भयंकर रोग है, फिर इसे शीतला माता क्यों कहते हैं ?
चेचक के उपचार हेतु वैज्ञानिक एवं डॉक्टरों ने बहुत बल दिया। इनके कथानानुसार चेचक विषाणुजति (Virus) रोग है इसका इलाज औषधियों से हो सकता है किन्तु वे पूर्णतः सफल नहीं हुए क्योंकि जिस प्रकार कपड़ों में लगी मैल को साबुन धो डालता है। किन्तु ‘काई’ को नहीं छुड़ा पाता किन्तु यदि कोई मू्ख तेजाब से कपड़े की काई को निकालने का प्रयास करता है तो परिणामस्वरूप कपड़ा ही नष्ट हो जाता है। उसी प्रकार कोई डॉक्टर दवाओं द्वारा चेचक के रोगी का इलाज करता है तो वह रोगी के जीवन के साथ मजाक करता है। चेचक का रोग शरीर के अन्दरूनी भाग से परे शरीर पर एक साथ प्रकट होता है। ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी बाराही. इन्द्राणी एवं चामुण्डा-ये सात माताएँ हैं। इनमें चामुण्डा का स्वरूप सबसे घातक होता है।
Sheetla Mata |
सात स्टेज वाले इस रोग में प्रथम स्टेज की देवी ब्राह्मी है। चौथे स्टेज तक कोई खतरा नहीं रहता अर्थात् वैष्णवी तक जातक के प्राण जाने का भय नहीं होता किन्तु उसके बाद जीवन खतरे में पड़ जाता है। कौमारी में एक बार विस्फोट होता है, जो नाभि तक दिखाई देता है। उाराही का आक्रमण मन्द गति से होता है अत: इसे ‘मन्थज्वर’ भी कहते हैं तथा चामुण्डा के आक्रमण से रोगी की दुर्गति हो जाती है। जीभ, आँख, नाक मुँह आदि पर पूरा प्रकोप होता है। रोगी अन्धा, लूला, लंगड़ा भी हो सकता है। चामुण्डा से आक्रानत रोगी शव (लाश) के समान हो जाता है। गधे पर सवार, हाथ में झाड़ लिए हुए, नग्न रूपधारी शीतला माता को मैं नमस्कार करता हूँ। प्रार्थना करने से क्यी लाभ है ? हृदय से निकली हुई भावना को ही प्रार्थना रूप से ईश्वर के सामने प्रकट करते हैं। प्रार्थना में ईश्वर की प्रशंसा करते हैं। विश्व में अनेक धर्मों को मानने वाले लोग हैं तथा उनकी अपनी अलग-अलग भाषायें हैं किन्तु सभी लोग प्रार्थनाओं के माध्यम से परमात्मा की कृपा प्राप्त करते हैं। भगवान ने अपने भक्तों की प्रार्थना स्वीकार करके उन्हें मनवांछित यरदान भी दिए हैं। कई बार तो ऐसा चमत्कार भी हुआ है जिसे डॉक्टर ने ला-इलाज (जिसका इलाज संभव न हो)घोषित कर दिया किन्तु अनेक दृष्टान्त मिले हैं । यह सत्य है किसच्चे मन से भी गयी प्रार्थनाओं से मानव का कल्याण निश्चित रूप से हो जाता है।
आखिए क्यों?