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चरखा नहीं निगोड़ा चलता

kabir

Kabir ke Shabd

चरखा नहीं निगोड़ा चलता।
पाँच तत्व का बना है चरखा, तीन गुणों में गलता।।
टूटी माल तीन भए टुकड़े, तक़वा हो गया टेढ़ा।
माँजत-२ हार गई मैं, धागा नहीं निकलता।।
चतुर बढैईया दूर बसत है, किसके घर मैं जाऊं।
ठोकत-२ हार गई मैं, हब भी नहीं सम्भलता।।
कह कबीर सुनो भई साधो, जले बिना नहीं छूटै।
जलते वक़्त में सुआ गीता, धधक-२ के जलता।।
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