Kabir ke Shabd
चरखा हालन लाग्या सारा।।
जहां कारीगर गढ़ने बैठा, वहां कूप अंधियारा।
बिन औजार छेद सब किन्हें, मजरा ठोक सँवारा।।
नो दस मास गढ़न में लागे, कुछ नहीं लेत बिचारा।
बहत्तर या में बनी कोठरी, बीच बना गलियारा।।
ठोक पीट के त्यार किया, फिर धरती पे तारा।
कातन हारी के मन भाया, सबको लगता प्यारा।।
जब चरखे का समय आ लिया, होग्या हुक्म करारा।
कह कबीर सुनो भई साधो, कर दिया जग से न्यारा।।