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chal hansa us desh samnad vich moti hai

kabir

Kabir ke Shabd

चल हंसा उस देश, समन्द विच मोती है।।
चलहंसा उसदेश निराला, बिन शशि भान रहे उजियाला।
लगे न काल की चोट, जगामग ज्योंति है।।
करूँ चलन की जब तैयारी, दुविधा जाल फंसे अति भारी।
हिम्मत कर पग धरूँ हंसनी रोती है।।
चाल पड़ा जब दुविधा छूटी, पिछली प्रीत कुटुम्ब से टूटी।
17 उड़ गई पाँच धरण पर सूती।।
जाए किया अमरापुर वासा, फेर ना रही आवन की आशा।
धरी कबीर मौत के सिर पर जूती है।।
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