अन्ध विश्वास
एक पंडितजी और एक कुम्हार का मकान पास पास था। पंडितजी जब पूजा के समय आरती हेतु शंख बजाने लगते थे, तो कुम्हार का गधा भी रेंकना प्रारम्भ कर देता था। पंडितजी ने सोचा कि यह गधा पूर्व जन्म का कोई महात्मा है, जो भगवान को आरती में श्रद्धा पूर्वक भाग लेता ‘है। कुछ दिन बाद गधे की आवाज आनी बंद हो गई ।
इस पर पंडितजी ने कुम्हार से उसके गधे के बारे में पूछा । कुम्हार ने कहा–वह गधा तो मर चुका है। पंडितजी ने सोचा-महात्मा शंखेश्वर मर जाये और हम अपना सिर भी न मुंडावा सकें, यह ठीक नहीं है। अत: उन्होंने अपना सिर मुंडवा लिया। जब शाम को पंडितजी अपने एक शिष्य की दुकान पर गये तो शिष्य ने पूछा–पंडितजी! आपने अपना सिर क्यों मुंडवा लिया है। पंडितजी ने बताया कि महात्मा शंखेएवर का स्वर्गवास हो गया है
इसलिए मैंने सिर मुंडवाया है। यह सुनकर उस शिष्य ने भी अपनी खोपड़ी मुंडवा ली। बाजार बालों ने सेठजा की खोपड़ी को मुंडा हुआ देखा तो उनसे इसका कारण पूछा तो सेठजी ने बताया कि माहत्मा शंखेशवर जी का स्वर्गवास हो जाने के कारण सिर को मुंडवाया है। इस पंर सभी बाजार वालों ने भी अपनी खोपड़ियाँ मुंडवा लीं। रविवार के दिन जब सैनिंक बाजार से सामान खरीदने आये तो सारे बाजार वासियों के सिरों को देखा तो उन्होंने पूछा–मुंडन संस्कार का क्या कारण है? उन्होंने बताया कि महाराज शंखेश्वर की मृत्यु हो जाने के कारण सिरों को मुंडवाया है। यह सुनकर फोज के सभी सिपाहियों ने भी अपने सिर मुंडवा लिये।