छंद लखमीचन्द |
तेरे किले की चीज गिना दूँ, दस दरवाजे ला राखे।
बत्तीस सड़क बहत्तर कोठी, नल पानी के ला राखे।
बहत्तर कमरे तेरे किले में, सबमे फर्श बिछा राखे।।
नो दरवाजे आँख्यां देखे, दसवें का कोय तोल नहीं।
जो टोह ले दसवां दरवाजा, उस मानस का मोल नहीं।
वो चाल्या जा वैकुंठ पुरी में,इस मे कोए मखोल नहीं।।
तेरा किला यो बना आलीशान जी,
पर ना दरवाज़ा पाया।।1।।
बत्तीस सड़क बहत्तर कोठी, दसवें दरवाज़े में लिये तार।
गंगा जमना सरस्वती जहां, त्रिवेणी की बहती धार।
अपना किला जो देख्या चाहवे, अपना घोड़ा कर तैयार।
अपना घोड़ा करड़ा राखे, जब दरवाज़े पै जान देगा।
पवन वेगी घोड़ा छूटै, जो सारे किले नै छान देगा।
जै दरवाज़ा दिख गया तै,दिखाई कुछ प्रमाण देगा।
किला बना धरती आसमान में,
यो सहज नहीं है पाना।।2।।
इस्ते आगे लिकड़े पाछे, भय के रस्ते आवेंगे।
नो दरवाजे के जितने मानस, सारे तनै भकावेंगे।
भूत प्रेत सांप और बिछू, भगे ख़ान ने आवेंगे।।
तूं किस्से तै भी डरिय मतना, कदे डरते का कांपे गात।
दसवें दरवाज़े के रस्ते तूँ, चलता रहिये दिन और रात।
जितने मानस मिलें रस्ते में, किसे तैं ना करिये बात।।
तूँ सुनले खोल के कान जी,
कदे जावै तूँ, उलटा ताहया।।3।।
इस तैं आगे लिकड़े पाछे, पाट किले का बेरा जागा।
सात समंदर ताल आवें, जडे कै घोड़ा तेरा जागा।
989 नाले आवें, चलता हार बछेरा जागा।।
89 झरने आगे आवें, उड़े तैं भी जाना होगा।
विष्णु का वैकुंठ मिले, तने जाके दर्शन पाना होगा।
शिवपुरी ब्रह्मा का वासा, तनै शीश झुकाना होगा।।
तूँ देखले धरके ध्यान जी,
वा दिखे दरवाज़े की छाया।।4।।
इस तैं आगे लिकड़े पाछे, फिर दरवाज़ा दीख जागा।
सारे रस्ते राह में रहज्यां, फेर वो रस्ता ठीक जागा।
जै दरवाज़ा देख लिया, कुछ आप बनाना सीख जागा।।
गुरुजी से लेके चाबी, दरवाज़े के खोल द्वार।
दसवें दरवाज़े पै चढ़के, देख लिये सारा संसार।
उड़े बनेगा तेरा ठिकाना, ना आना होगा बारम्बार।।
पर होना पड़े कुर्बान जी,
यो छंद लखमीचन्द गावै।।5।।