Search

बंजारन अँखियाँ खोल, टांडा तेरा किधर चला -कबीर साहेब की आरती

कबीर के जीवन एवं मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए

Kabir ke Shabd

बंजारन अँखियाँ खोल, टांडा तेरा किधर चला।
क्या सोवै उठ जाग दीवानी, आगै गारत गोल।।
तूँ गहले गफलत के माते, तेरी चीज है वस्तु अमोल।।
चहुँ दिशा लद लद चले मुसाफिर ,मत गई देदे पोल।।
देव बिहुनी सब ही सूनी, ना हद किये किलोल।।
रैन बिहुनी ये तूँ न जानी, कहाँ बजाऊं ढोल।।
नित्यानन्द महबूब गुमानी, रंग में रंग झकोल।।
Share this article :
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply