हुज्जत बाजी
हुज्जत बाजी छोड़कर, मिल जाओ इकबार।
हाथी पूरा फिर बने, होवे बेड़ा पार॥
किसी ग्राम में एक हाथी आ गया। उसे देखने के लिए गाँववासी एकत्र हो गये। इसी ग्राम में अंधों के लिए एक पोषणालय था। अंधों ने भी हाथी को देखने की इच्छा प्रकट की। गाँव वासियों ने उनकी इच्छापूर्ति के लिए प्रत्येक अंधे को अपने कंधे पर बैठाकर हाथी के पास ले गये। एक आदमी ने अंधे मनुष्य का हाथ हाथी के कान से लगाकर कहा टटोलो यह हाथी है। दूसरे आदमी ने अपने कंधे पर सवार अंधे से हाथी की पूंछ पकड़ा कर कहा कि पहचान लो यह हाथी की पूँछ है। इस प्रकार तीसरे आदमी ने सूंड, चौथे आदमी ने दाँत, पाँचवें आदमी ने पैर एवं छठे आदमी ने कमर पर हाथ रखवाकर हाथी को जाँचने के लिए कहा।
इस प्रकार इन नेत्र हीनों को हाथी दिखलाकर उनके आश्रम पर पहुँचा दिया। रात्रि में इन नेत्र हीनों के पास चार ग्रामवासी बैठे थे तो नेत्र हीनों में हाथी पर चर्चा होने लगी। एक नेत्र हीन व्यक्ति से उन्होंने पूछा क्यों साहब तुम लोग हाथी को देख आये। हमें यह बताओ कि हाथी कैसा होता है? जिस नेत्रहीन व्यक्ति ने हाथी का कान छुआ था, वह बोला-हाथी तो अनाज फटकने वाले छाज की तरह होता है। दूसरे नेत्रहीन आदमी जिसने हाथी की पूँछ को छुआ था, बोला-हाथी तो मोटे डंडे के समान होता है। तीसरा नेत्रहीन आदमी जिसने सूंड का स्पर्श किया था बोला -हाथी तो धान कूटने वाले मूसल जैसा होता है।
चौथा नेत्रहीन व्यक्ति बोला तुम सबने हाथी को पहचाना ही नहीं, वह तो चिकनी-चिकनी मोंगरी के समान होता है क्योंकि उसने हाथी के दाँतों का स्पर्श किया था। पैरों का स्पर्श करने वाला नेत्रहीन बोला कि तुम्हारी आँखें तो है ही नहीं परन्तु ऐसा लगता है कि तुम्हारे हाथ भी टूट गये थे, हमने खूब हाथ फेरकर देखा था, वह तो खम्भे के समान होता है। छठा नेत्रहीन व्यक्ति बोला- पता नहीं तुम क्या देख आये, हमने खूब हाथ फेर कर देखा था हाथी क्या था कपड़ों का बिटहा था। इस प्रकार प्रत्येक नेत्रहीन व्यक्ति एक दूसरे की बात न मानकर अपनी बात को सत्य सिद्ध करना चाहता था। जब विवाद बढ़ने लगा तो एक आदमी ने नेत्रहीनों को बताया, इन सब अंगों को मिला दो तो हाथी हो जायेगा।
जिस तरह इन समस्त अंगों को मिलाने से हाथी होता है उसी तरह कर्म के टुकड़ों को एक जगह मिला दें तो धर्म का एक विशाल स्तम्भ बन जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि व्यक्ति आप्रस में जिरहबाजी न करके सत्य के विशाल संग्रह की ओर अग्रसर हों तो यह संगठन उनको भव सागर से पार लगा सकता है और विश्व तथा प्राणीमात्र का कल्याण हो सकता है।