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अगत में मतना, बोवै शूल – कबीर सागर

कबीर पंथ के मूल मंत्र

Kabir ke Shabd

अगत में मतना, बोवै शूल।।
चन्दन बिरवा कदे ना सींचा, सींचे आक बबूल।
आपे को तूँ बड़ा कर मानै, औरों को गिनता धूल।।
जो कोय तुझ को कांटे बोवै, तूँ वाको बो फूल।
तेरे तुझको फूल मिलेंगे, वाको है त्रिशूल।।
ये मत जानै साहिब नहीं है, लेगा ब्याज और मूल।
वहां से आया भजन करण को, कैसे गया अब भूल।।
कह कबीर चेतै कोय कोय, गैल पड़े सब भूल।।
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