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परिवर्तन || Aakhir kyon – change is the law of nature ||

प्रकृति का नियम है परिवर्तन

इंसान दुख के सिवाय हर चीज को सदा एक जैसा बनाए रखने की कोशिश करता है। इसमें वह कोई परिवर्तन नहीं चाहता है। उसका बस चले, तो वह कभी न बूढा होना चाहेगा और न ही कभी वह इस संसार से विदा होना चाहेगा। पर सच तो यह है यह जीवन एक सराय है। यहां प्रत्येक मनुष्य की एक निश्चित जीवन अवधि है। अर्थात जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है। इसलिए किसी भी माया-मोह में बंधना व्यर्थ है। वास्तव में, प्रत्येक मनुष्य को यह जरूर सोचना चाहिए कि जीवन में बहुत देर विश्राम कर लिया।

जितना कुछ हासिल किया जा सकता था, वो कर लिया। यह सच है कि स्वस्थ रहने के लिए नींद जरूरी है, लेकिन सिर्फ सोते रहना उचित नहीं है। जागना भी आवश्यक है। बहुत देर बैठ लिया एक जगह पर अब स्थानांतरण जरूरी है। हर चीज की एक सीमा होती है।

change is the law of nature
change is the law of nature

उदाहरण के लिए हम गन्ने या नींबू से एक सीमा तक ही रस निचोड सकते हैं। एक सीमा के बाद रस समाप्त हो जाता है। बिल्कुल यही रूप जीवन का भी है। हम एक निश्चित अवधि तक ही कुछ कर सकते हैं। उस अवधि के बाद हमारे लिए कार्य कर पाना संभव नहीं होता है। दरअसल, लोग टिकने की कोशिश में ही मिटने लगते हैं। यहां कुछ भी स्थिर नहीं है, सब कुछ क्षणभंगुर है। सब की अपनी-अपनी अवधि है, अपनी-अपनी सीमाएं हैं। इस संसार में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो हमारे साथ जा सके। इसके अलावा, संसार में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो हमारे जाने से फीका हो जाए। यहां हमेशा के लिए कुछ भी शेष नहीं रहता है।

जो पत्तियां आज हरी हैं, वह कल पीली पड जाएंगी। जो टहनियां आज शाख से जुडी हैं, वह कल शाख से अलग हो जाएंगी। जो फूल आज खिल रहा है, वह कल मुरझा जाएगा। सुंदर कुरूप हो जाता है। कुरूप सुंदर हो जाता है। सभी प्रक्रियाएं निरंतर, अविरल चलती रहती हैं। इसका अर्थ है कि परिवर्तन होता रहता है। सच तो यह है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इसलिए यहां विश्राम करना तो ठीक है, परंतु डेरा डालना व्यर्थ है। जीवन बहते पानी की तरह होना चाहिए। क्योंकि बहते पानी में सदा ताजगी एवं ऊर्जा बनी रहती है। यदि आगे बढना है, यात्रा करनी है,

मंजिल तक पहुंचना है, तो कदमों के मोह को त्यागना होगा। आपको जमीन से जुडे पिछले कदम को उठाना एवं हटाना होगा। भगवान बुद्ध अक्सर अपने शिष्यों को कहा करते थे कि पक्षी के जैसा ही हमारा जीवन स्वतंत्र होना चाहिए। वे एक पेड से दूसरे पेड पर, एक डाल से दूसरी डाल पर फिरते रहते हैं। वे वे न बंधते हैं और न ही बांधते हैं। वे मुक्त आकाश में उडते रहते हैं, लेकिन इनसान न स्वयं जीते हैं और न दूसरों को जीने देते हैं। वे न चीजों को छोडते हैं और न दूसरों को छोडने देते हैं। हमेशा जकडे रहते हैैं। यही कारण है कि इनसान विदाई, जुदाईया किसी अंत को नकारात्मक ढंग से देखते हैं। यदि हम ध्यानपूर्वक देखें, तो पाएंगे कि किसी इनसान का समय अच्छा कट रहा होता है, तो उसकी शिकायत होती है कि वक्त जल्दी बीत गया।

वहीं दूसरी ओर, यदि किसी व्यक्ति का बुरा दिन बीत रहा होता है, तो उसकी शिकायत होती है कि वक्त बहुत धीरे-धीरे बीत रहा है। मनुष्य के इस शिकायत के पीछे उसकी अज्ञानता है। उसे दुख की घडी तो याद रहती है, लेकिन सुख के क्षण वह जल्दी भूल जाता है। उसे मिलन का अवसर बिल्कुल नजर नहीं आता है। सच तो यह है कि यदि मनुष्य को जीवन का सच्चा अनुभव प्राप्त करना है, तो उसे सुख और दुख दोनों को समान भाव से स्वीकारना होगा।

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