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अनुकूलता और प्रतिकूलता – A story of Compatibility and hostility in Hindi

अनुकूलता और प्रतिकूलता

एक कहानी:

मैने मन्दिर में एक ताई जी से सौ रूपये उधार लिये, और कहा कि एक हफ़्ते बाद लौटा दूंगा। १-२ दिन बाद मन में हुआ कि लौटाना ना पङे तो ज्यादा अच्छा। मन्दिर तो रोज जाता था और ताई जी मिलती थी। अब रूपये लौटाने का मन नहीं था तो मैने आंखे बचाना शुरू कर दी। जब भी ताई जी को देखता तो इधर उधर हो लेता। और मन में ही डर और थोङी चिन्ता भी शुरू हो गयी- अगर ताई जी ने मुझे देख लिये और पैसे मांगे तो क्या जवाब दूंगा? अगर ताई जी ने किसी और को ये बात बता दी तो क्या होगा?

मेरा एक दूसरा मित्र भी था, उसने भी ताई जी से पैसे उधार लिये और एक हफ़्ते का वायदा किया और २ दिन में ही लौटा दिया।

Compatibility and hostility

अब ये ही बात जीवन में लागू होती है। हम दूसरो को दुख देते हैं, और जब उसका फ़ल हमें मिलता है तो उससे डरते हैं, और चिन्तित होते हैं। जबकि ज्ञानी लोग फ़ल को सहर्ष रूप से स्वीकार करने को तैयार रहते हैं, जैसा कि मेरे मित्र ने किया।

होना तो यह चाहिये कि हम प्रतिकूलताओं को आने दें क्योंकि वे हमारे पुराने कर्मो के आधार पर ही आ रहें है, जबकि हम उनसे चिन्तित हो जाते हैं, और डरने लगते हैं।

दुनिया में उसे बहादुर कहते हैं जो प्रतिकूलताओं से लङकर उन्हे अनुकूलता में बदल दे, मगर वास्तविकता में तो बहादुर वह है जो प्रतिकूलता होने पर भी अपने मन को सम्भाल ले।

इसलिये कहते हैं:

⦁ जब किसी से पैसे लिये है तो वापस करने पङेंगे – ऐसे ही जब किसी को दुख दिया तो दुख झेलना भी पङेगा।
⦁ प्रतिकूलता को समता से सहे बगैर परमात्मा के शासन में जाना संभव नहीं।
⦁ कष्टसहिष्णु बनो।

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