वेष से साधु साधु नहीं, गुणों से साधु साधु है
एक साधु प्रात८ काल शौचादि से निवृत्त होकर नदी किनारे एक धोबी के कपड़े धोने के पत्थर पर खड़े-खड़े ध्यान करने लगे । इतने में धोबी गधे पर कपड़े लादे वहाँ आया । उसने कपड़े उतारे और प्रतीक्षा करने लगा कि उसके पत्थर से साधु हटें तो वह अपना काम प्रारम्भ करे । कुछ देर प्रतीक्षा करने पर भी जब साधु हटे नहीं तब उसने प्रार्थना की… महात्माजी ! आप पत्थर से उतरकर किनारे खड़े हों तो मैं अपने काम मेँ लगूँ। मुझे देर हो रही है
साघु ने धोबी की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। धोबी कुछ देर और रुका रहा, उसने फिर प्रार्थना की और अन्त में उकताहट के कारण उसने धीरे से साध्रु का हाथ पकडकर उन्हें पत्थर से उतारने की चेष्टा की। एक धोबी के हाथ पकड़ने से साध्रु को अपना अपमान जान पडा। उन्होंने उसे धक्का दे दिया। गया । धोबी की श्रद्धा साधु का क्रोध देखकर समाप्त हो गयी
उसने भी साधु को धक्का देकर पत्थर से हटा दिया। अब तो साधु महाराज भिड़ गये धोबी से। दोनों में गुत्थम गुत्थ होने लगी। धोबी था बलवान्। उसने साधु को उठाकर पटक दिया और उनके ऊपर चढ़ बैठा।
नीचे दबे साधु प्रार्थना करने लगे…मेरे आराध्य देव ! मैं इतनी श्नद्धा-भक्ति से आपकी पूजा – आराधना तथा ध्यान करता हूँ फिर भी आप मुझे इस धोबी से छुड़ाते क्यों नहीं ?’
साधु ने उसी समय आकाशवाणी सुनी…तुम्हारी बात ठीक है, हम छुड़ाना भी चाहते हैं किंतु यही समझ मेँ नहीं आता कि तुम दोनों में साधु कौन है और धोबी कौन है।
इस आकाशवाणी को सुनकर साधु का गर्व नष्ट हो गया। धोबी से उन्होंने क्षमा मांगी और उसी दिन से सत्य ,क्षमा, दया आदि साघुता के गुणों को अपनाकर वे सच्चे साधु बन गए।