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सम्मान पद में हैँ या मनुष्यता में – A Matter of Human Dignity


सम्मान पद में हैँ या मनुष्यता में 
सिकन्दर ने किसी कारण से अपनी सैना के एक सेनापति से रुष्ट होकर उसे पदच्युत करके सूबेदार बना दिया। कुछ समय बीतने पर उस सूबेदार को सिकन्दर के सम्मुख उपस्थित होना पड़ा। सिकन्दर ने पूछा – मैं तुमको पहले के समान प्रसन्न देखता हूँ बात क्या है ? 
सूबेदार बोला- श्रीमान्! मैं तो पहले की अपेक्षा में सुखी हूँ। पहले तो सैनिक और सेना के छोटे अधिकारी मुझसे डरते थे, मुझसे मिलने में संकोच करते थे; किंतु अब वे मुझसे स्नेह करते हैं । वे मेरा भरपूर सम्मान करते हैं । प्रत्येक बात मेँ मुझसे सम्मति लेते हैं । उनकी सेवा करने का अवसर तो मुझे अब मिला है ।
Islam as a Religion of Human Dignity and Honor - IslamiCity
A Matter of Human Dignity
सिकन्दर ने फिर पूछा – पदच्युत होने मेँ तुम्हें अपमान नहीं प्रतीत होता। सूबेदार ने कहा- सम्मान पद में है या मानवता मेँ ? उच्च पद पाकर कोई प्रमाद करे, दूसरों की सतावे, घूस आदि ले और गर्व में चूर बने तो वह निन्दा के योगय ही है । वह तो बहुत तुच्छ है । सम्मान तो है दूसरों की सेवा करने में, कर्तव्यनिष्ठ रहकर सबसे नम्र व्यवहार करने में और ईमानदारी में । भले वह व्यक्ति सैनिक हो या उससे भी छोटा गांव का चौकीदार । सिकन्दर ने कहा – मेरी भूल पर ध्यान मत देना । तुम फिर सेनापति बनाये गये ।
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