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गौतम बुद्ध के सामने एक राजा ऐसे हो गया था शर्मिंदा – A king was embarrassed in front of Gautam Buddha

गौतम बुद्ध के सामने एक राजा ऐसे हो गया था शर्मिंदा

4 मई को भगवान गौतम बुद्ध की जयंती है।

 हिंदी पंचांग के अनुसार वैशाख मास की पूर्णिमा (इस वर्ष 4 मई को) पर बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध की जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि करीब 563 ई.पू. इसी तिथि पर नेपाल की तराई में शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी वन में बुद्ध का जन्म हुआ था। इनके पिता राजा शुद्धोधन थे और माता का नाम माया देवी था। जन्म के समय ही माता की मौत हो जाने के कारण बुद्ध का पालन-पोषण विमाता प्रजापति गौतमी ने किया। यही कारण है कि उन्हें गौतम भी कहा जाता है। गौतम बुद्ध, भगवान महावीर के समकालीन थे। हिंदू मान्यताओं में बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार ही माना जाता है। इस अवतार में उन्होंने संसार को करुणा का महत्व बताया है।

गौतम बुद्ध की जयंती के अवसर यहां जानिए उनसे जुड़ा प्रसंग…

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जब गौतम बुद्ध के सामने एक राजा हो गया शर्मिंदा गौतम बुद्ध के काल में एक राजा था अजातशत्रु। एक समय जब अजातशत्रु कई मुश्किलों से घिर गया, राजा मुसीबतों से बाहर निकलने का रास्ता नहीं खोज पा रहा था। इन परेशानियों के कारण अजातशत्रु की चिंता बहुत बढ़ गई थी। इसी दौरान उनकी भेंट एक तांत्रिक से हुई। राजा ने तांत्रिक को चिंता का कारण बताया। तांत्रिक ने राजा को मुसीबतों से मुक्ति के लिए पशु बलि देने का उपाय बताया। राजा ने तांत्रिक की बात पर भरोसा करते हुए पशुओं की बलि देने का मन बना लिया। इसके लिए एक बड़ा अनुष्ठान किया गया और बलि के लिए एक भैंसे को बांधकर मैदान में खड़ा कर दिया गया। संयोगवश उस समय में गौतम बुद्ध राजा अजातशत्रु के नगर पहुंचे। बुद्ध ने देखा कि एक मूक पशु की गर्दन पर मौत की तलवार लटक रही है तो उनका मन करुणा से भर आया। वे राजा अजातशत्रु के पास पहुंचे। बुद्ध ने एक तिनका राजा को देकर कहा कि राजन्, मुझे इसे तोड़कर दिखाएं। राजा ने तिनके के दो टुकड़े करके गौतम बुद्ध को दे दिए। गौतम बुद्ध ने टूटे तिनके फिर से राजा को देकर कहा कि अब इन दोनों टुकड़ों को जोड़कर दिखाएं। गौतम बुद्ध की यह बात सुनकर अजातशत्रु अचंभित रह गया। राजा ने कहा- टूटे तिनके कैसे जुड़ सकते हैं? राजा का उत्तर सुनकर बुद्ध ने कहा कि राजन्, जिस तरह यह तिनका तोड़ा जा सकता है, जोड़ा नहीं जा सकता। उसी तरह मूक पशु को मारने के बाद आप उसे जिंदा नहीं कर सकते। बल्कि इस जीव हत्या से परेशानियां कम होने के बजाय और बढ़ती ही हैं। आप ही की तरह इस पशु को भी तो जीने का हक है। जहां तक मुश्किलों का सवाल है तो इन्हें कम करने के लिए बुद्धि और वीरता का सहारा लेना चाहिए। असहाय प्राणियों की बलि मत दीजिए। भगवान बुद्ध की ये बात सुनकर राजा अजातशत्रु भी शर्मिंदा हो गया। राजा ने तत्काल पशु-बलि बंद करने का आदेश दे दिया।

फोटो- बौद्ध गुरु नागार्जुन

जब एक चोर का मन बदल दिया बौद्ध गुरु नागार्जुन ने एक चोर महान बौद्ध गुरु नागार्जुन के आकर्षण में खिंचा चला आया। उसने ऐसा गरिमामय व्यक्तित्व नहीं देखा था। उसने नागार्जुन से पूछा, ‘क्या मेरे उद्धार की भी कोई संभावना है।’ फिर जल्दी से बोला, ‘एक बात स्पष्ट कर दूं। मैं चोर हूं और चोरी छोड़ नहीं सकता, इसलिए इसे छोड़ने को मत कहना।’ गुरु बोले, ‘तुम्हारे चोर होने की कौन बात कर रहा है।’ चोर ने कहा कि वह जिस भी साधु-महात्मा के यहां गया उसने चोरी छोड़ने को कहा। नागार्जुन ने हंसकर कहा, ‘तुम जरूर चोरों के यहां गए होंगे वरना उन्हें इसकी क्यों चिंता होनी चाहिए। अब जाओ और जो चाहे करो। सेंध मारो, चोरी करो, चीजें उठा लाओ। शर्त यही है कि जो भी करो पूरी जागरूकता से करना।’ तीन हफ्ते बाद चोर लौटा। कहने लगा, ‘आपने मुझे फंसा दिया। यदि मैं जागरूक रहता हूं तो चोरी नहीं कर पाता और चोरी में ही लग गया तो जागरूक नहीं रह पाता।’ नागार्जुन ने कहा, ‘चोरी की बात मत करो। मैं कोई चोर नहीं हूं। तुम्हें जागरूकता चाहिए या नहीं? ’ चोर ने कहा, ‘नहीं…नहीं मैंने जागरूकता का स्वाद चख लिया है। इसे छोड़ नहीं सकता। कल मैं राजमहल में घुसने में कामयाब हो गया। जागरूक रहता तो हीरे-जवाहरात पत्थर नजर आते। जागरूकता छोड़ता तो खजाना नजर आता, लेकिन मैंने फैसला कर लिया है कि असली खजाना तो यह जागरूकता है। हीरे-जवाहरात के लिए इसे नहीं छोड़ सकता। उनका इतना मूल्य नहीं है।’ वह नागार्जुन को समर्पित हो गया और कालांतर में बुद्धत्व को प्राप्त हुआ।

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